Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 148
________________ १२६.] संक्षिप्त जैन इतिहास | वेजी देश ही निवासी थे । उपरांत जैन धर्म ग्रहण करने पर वह कर्णाटक देशमें आरहे ! उन्होंने संस्कृत और कनड़ी दोनों भाषाओं में साहित्य-रचना की थी । साहित्य में वह 'होन्न' - पोन्निग' - शांतिवर्म ' सवन आदि नामों से उल्लिखित हुए हैं। पोनकी उल्लेखनीय रचना 'शांतिपुराण' था, जिसे उन्होंने स्वयं 'पूर्ण-चूड़ामणि' न्थ कहकर पुकारा है । कन्नड़ और संस्कृत साहित्य एवं 'भक्करदराज्य' ( अक्षर राज्य) में पोन सर्वश्रेष्ठ कवि थे; इसीलिये राष्ट्रकूट राजा कृष्णसे उन्हें 'उभय - कवि - चक्रवर्ती' की उपाधि प्राप्त हुई थी । जिनाक्षरमाले ' नामक ग्रन्थ भी कवि पेनकी रचना है। उनकी अन्य रचनायें अनुपत्र हैं। ' महाकवि रत्न । तीन 'रत्नों' में अन्तिम महाकवि रत्न थे, जिन्हें 'कविरत्न ' 'अभिनवकवि चक्रवर्ती' इत्यादि उपनामोंसे ग्रंथोंमें स्मरण किया गया है। कन्नड़ कवियोंमें रत्न सर्वश्रेष्ठ कवि गिने जाते हैं । उन्होंने अपने जन्म से वैश्य जातिके वलेर कुलको समलंकृत किया था । उनके पितृगण चूड़ी बेचनेका रोजगार किया करते थे, पर बेचारोंकी आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं थी । उनके पिताका नाम जिनवल्लम अथवा जनवल्लभेन्द्र था और उनकी माता अचलव्वे नामक थीं। सेठ जिनवल्लम जिससमय अपने निवास स्थान मुदबलल (मुछोक) में थे, जो बेलिगेरे ५०० प्रदेश के अन्तर्गत नम्भुखण्डी ७० प्रतिका एक ग्राम था, उससमय सन् ९४० ई० में कवि रन्नका 17 १-गंग पृ० २७८ व कटि० पृ० ३१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat - www.umaragyanbhandar.com

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