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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
और इसे कनड़ीके सर्वश्रेष्ठ ग्रंथोंमें एक बनलाया है। इन्हीं आचार्यके रचे हुए अन्य ग्रंथ 'शब्दागम'-' युक्त्यागम '-'परमागम'• छन्दशास्त्र'-' नाटक ' मादि विषयोपर भी थे । पूर्व-कवियोंमें विशेष उल्लेखनीय श्रीविजय, कविश्वर, पण्डन, चंद्र' लोकपाल
आदि थे । ९ वीं और १० वीं शताब्दियों के मध्यवर्ती-कालमें गंगवाड़ी ही कनड़ी साहित्यकी लील भूमि होरहा था। उस समय किम्वोलल. कोप, पुलिगेरे और मोमकुण्ड भी कनड़ी साहित्यके केंद्र थे। नागवमें, पम्प, पोन्न, मसग, चाकुंडय. रन्न, प्रभृति महाकवि 'उभय-भाषा-कवि-चक्रवर्ती थे। अर्थात् उन्होंने संस्कृत, प्राकृत और कनड़ी दोनों प्रकारकी भाषाओं में श्रेष्ठ रचनायें रची थीं।
इस कालके सर्व प्राचीन कवि 'हरिवंश" भादि ग्रन्थोंके रचयिता गुणवर्म थे, जो गंग राजा ऐरेयप (८८६-९१३ ई०) क समकालीन थे। पोन्न भौर केसिराजने असग कविका उल्लेख किया है; जो संभवतः विमानस्व मो-काव्य' के रचयिता थे। किंतु इस समयके कवि-समुदायमें सर्व प्रमुख कवि पम थे। जिन्हें 'कविता गुणार्णव'-'गुरुहम्प'- पूर्णकवि'-'सुजनोत्तम'-हंसराज' कहा गया है। महाकवि पम्पका जन्म सन् ९०२ में वेङ्गिके एक प्रसिद्ध
ब्राह्मण वंशमें हुमा था। बेनि प्रदेशके महाकवि पम्प। विक्रमपुर नामक अग्रहारके निवासी मभिराम
देवराय नामक महानुभाव उनके पिता थे। बन धमकी शिक्षासे प्रभावित होकर उन्होंने श्रावकके व्रत प्रण किये
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