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गङ्ग-राजवंश।
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थे। महाकवि पम्प इन्हींके पुत्र थे और वह जन्मसे ही एक श्रद्धालु जैनी थे। उनके संरक्षक भरिकेशरी नामक एक चालुक्य-नृप थे, जो जोल नामक प्रदेशपर शासन करते थे। कवि पम्प भरिकेशरीके राजदरबारमें न केवल राजकवि' ही थे, बल्कि मंत्री अथवा सेनापति भी थे। उनकी राजधानी पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर ) में रहकर उन्होंने ग्रन्थ रचना की थी। सो भी महाकविने साहित्यक रचनायें यशकी माकांक्षा अथवा किसी प्रकारके अन्य लोभसे प्रेरित होकर नहीं की थी। उन्होंने लोककल्याणकी भावनासे प्रेरित होकर ही भमूल्य ग्रंथ-रत्न सिजे थे। उनकी प्रतिभा अपूर्व थी। · आदि. पुराण' के समान महान् काव्यको उन्होंने तीन महीने जैसे मल्ल समयमें रच दिया था और 'विक्रमार्जुनविजय' अर्थात् 'पम्म भारत'को रचने में उन्हें केवल छै महीने ही लगे थे। इनके अतिरिक्त उन्होंने 'लघुपुराण'-'पार्श्वनाथपुगण' और 'परमार्ग' नामक ग्रंथोंकी भी रचना की थी। पूर्वोक्त दो ग्रंथों के रचनेसे ही उनका यश दिगन्तव्यापी हो गया था। मरिकेसरीने कविकी इन रचनाओंसे प्रसन्न होकर एक ग्राम भेंट किया था। इस समय अर्थात् दशवीं शताब्दिके जो तीन कवि कन्नड़
साहित्यके 'तीन-रत्न' कहे जाते हैं, उनमें महाकवि पोन्न। महाकवि पम्पके भतिरिक्त महाकवि पोन
और रन (रत्न) की भी गणना है। कवि पोल महाकवि पम्पके समकालीन थे। पम्पके पिताकी तरह वह भी
१-ग. पृ० २०० लि. पृ...। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com