Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 149
________________ गङ्ग-राजवंश। [१२७ जन्म हुआ था। जन्मसे ही वह देवी प्रतिमाको प्रकट करते थे। गंग-सेनापति च वुडगयका नाम सुनकर युवक रन उनकी शरणमें पहुंचे और उनके आश्रयमें रहकर वह संस्कृत-प्राकृत और कन्नड़ भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित होगये । संस्कृत के 'जैनेन्द्र' व्याकरण और कनड़ी 'शब्दानुशासन में वह निष्णात थे। साथ ही कनड़ी में कविता करनेकी देवी शक्तिका भी उनमें अद्भुत प्रदर्शन हुमा था। उन्होंने सबसे पहिले अपनी कवित्व शक्तिका चमत्कार जिनेन्द्र भगवानका चरित्र रचन्में प्रगट किया। उन्होंने सर्व प्रथम 'भजितपुराण' नामक ग्रंथ रचा। श्री अजितसेनाचार्य उनके गुरू थे । जैन सिद्धांतका मर्म कविने उनके निकटसे ही प्राप्त किया था। उपरांत उन्होंने अपना दूसरा प्रसिद्ध ग्रन्थ गदायुद्ध' नामक रचा, जिसमें उन्होंने भीमके पौरुषका वस्खान दुर्योधनसे जूझते हुए खूब ही किया। इस ग्रंथको उन्होंने अपने आश्रयदाता माहवमल्ल नामक राजाको वक्ष्यकरके लिखा है। सम्रट तैल द्वितीय एवं अन्य सामंत और मांडलिक राजाओंसे कवि रन्नने सम्मान प्राप्त किया था । तैलप उनकी रचनाओंसे प्रसन्न हुये थे और उन्होंने कविको 'कवि चक्रवर्ती' की उपाधिसे विभूषित करने के साथ ही एक गांव, एक हाथी, एक पालकी और चौरी आदि वस्तुयें भेंट की थीं। कवि पोनके आश्रयदाता कतिपय सेनापतिकी पुत्री अतिमवेके भाग्रहसे कवि रन्नने, मपना मजितपुराण' लिखा था और उसमें इस धर्मात्मा महिलाकी प्रशंसा लिखले हुवे उन्हें 'दानचिंतामणि' बताया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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