________________
गङ्गाजवंश।
। १२१
धान
मप्रहारों, घटिकों और मठोंमें उच्च कोटिकी लौकिक मौर
धार्मिक शिक्षा प्रदान की जाती थी। अग्र. अग्रहार। हार घटिक संस्थायें प्रायः ब्राह्मण आचार्यो
द्वाग चलित होती थीं और इनका अन्तरप्रान्तीय सम्बंध था। कांचीपुरकी घटिका समन्तभद्र, जाद मादि जैनाचार्योने जाका ब्राह्मण विद्वानोंसे बाद किये थे। इन वादोंमें विजयी होनेवालेकी खूब ही प्रसिद्धि होती थी। यही कारण था कि दार्शनिक और तात्विक सिद्धान्तोंका सूक्ष्म अध्ययन तीक्ष्ण बुद्धिधारी छात्रगण विशेष रीतिसे किया करते थे। श्री अकलङ्कस्वामीकी कथासे स्पष्ट है कि उन्होंने प्राणोंको संकट में डालकर उच्च कोटिकी शिक्षा प्राप्त की थी। इससे स्पष्ट है कि यद्यपि एक बौद्धमठमें संस्थायें साम्प्रदायिक थी; परन्तु इनमें शिक्षा सार्वदेशिक रूपमें दी जाती थी। उच्च शिक्षाके लिये गंगवाड़ीके जैनियोंमें भी अपने मठ और
चैत्यालय थे, जिनके द्वारा जैनोंमें धर्मज्ञानका जैन मठ । प्रचार भी किया जाता था। ईस्वी सातवीं
शताब्दिमें पाटलिका (दक्षिण अर्काट जिला) का जैनमठ उल्लेखनीय समुन्नतरूपमें था। इसके अतिरिक्त पेरूर, मण्णे और तलसाड मादि स्थानोंके चैत्यालय भी उल्लेख योग्य है। इच संस्थानों द्वारा जबताके मन्तव्योंको परिष्कृत किये जानेके साथ ही उसमें शिक्षा और साक्षरताका प्रचार किया जाता था। बैन संघका उद्देश्य वैयक्तिक चारित्रको awa मानाथ ओस उद्दश्य
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com