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गङ्ग राजवंश।
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चक्रवर्ती ' कहलाते थे। यह बड़े भारी मंत्रमल्लिषेणाचार्य आदि। वादी थे । महापुगणकी प्रशस्तिमें इन्होंने
स्वयं अपनेको — गारुड मंत्रवाद वेदी' लिखा है। भैरव-पद्मावती कल्प' और 'ज्वालिनी कला' नामक इनकी दोनों रचनायें मंत्रशास्त्र विषयक हैं । 'बाल गृहचिकित्सा' नामका ग्रन्थ भी उनका रचा हुमा हे । 'महापुराण' और ' नागकुमार चरित्र' भी उनके रचे हुए ग्रन्थ हैं। इनके अतिरिक्त 'हितरूप. सिद्धि' नामक ग्रन्थ के कर्ता और मतिसागर मुनिके शिष्य दया. पाक मुनि भी उल्लेखनीय हैं। वह वादिराज मुनिके सहधर्मी थे। वादिराज दशवीं शताब्दिके अर्द्धभागमें हुए प्रसिद्ध भाचार्य थे। उन्होंने चालुक्योंकी राजधानीमें अनेक परवादियों को परास्त किया था। वादिराजके सम सामयिक श्रीविजय नामक भाचार्य थे, जिनकी विनय गंगवंशके बुटुग, मारसिंह और रक्कमगंग नामक राजा
ओंने की थी। सारांशतः गंगवाड़ीमें उस समय जैनधर्मके भाषारस्तम्भरूप अनेक प्रसिद्ध आचार्य हुये थे, जिन्होंने अपने पवित्र उपदेश और पावन कार्योंसे लोकका महान् कल्याण किया था। दिगम्बर जैनधर्मका मादर्श सदैव उसके तीन जगत प्रसिद्ध
सिद्धांतों-अहिंसा, त्याग और तपमें गर्मित. जनाचार। रहा है। साथ ही मनुष्योंकी बुद्धि और
वाणीको परिष्कृत भोर समुदार बनाने लिये उसका न्यायाला स्याद्वाद सिद्धांतपर स्थिर रहा है। गंग
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