Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 137
________________ गङ्ग-राजवंश। [११५ सम्राट् अमोघवर्षके गुरु श्री जिनसेनाचार्य के पहले होचुके थे। उन्होंने अपने समयके राजा और प्रनाको धर्मस्त बनाकर जैनमतका उद्योत किया था। यह प्रभाचन्द्र परीक्षामुखके' रचयिता श्री माणिकनंदी भाचार्य के शिष्य थे और इन्होंने प्रमेयकमनमार्तण्ड' और 'न्यायकुमुद चंद्रोदय' नामक ग्रन्थोंकी रचना की थी । जैनेन्द्र व्याकरणका ‘शब्दाम्भोज भास्कर' नामक महान्यास भी संभवतः आपका बनाया हुमा है ।' निस्संदेह वह एक अत्यंत प्रभावशाली विद्वान थे (One of the most infteential Jain techer) श्री जिनसेनाचार्य और श्री गुण मद्रायने राष्ट्रकूट राजामें उन्हींकी तरह धर्मका उद्योत किया था। किन्छु गंगवाड़ीमें दूसरे प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री मनितसेन थे। ___ यह भनितसेनाचार्य गङ्गसम्राट् मारसिंह और प्रसिद्ध गंग सेनापति चामुंडरायजीके गुरू थे। “मल्लिअजितसेनाचार्य। घेणाचार्य विचित 'नागकुमार काम्य' और 'भैरवपद्मावतीकर' नामक ग्रंथोकी प्रशस्तियोंमें उनको 'मुपकिरीट' विघट्टिनकमयुग:-'सकल नृपसुकुटपटितचरण युग: - जितकषाय'-'गुणवारिधि'-'चारूचरित्र' तपोनिधि लिखा है। श्री नेमिचन्द्राचार्यने अपने 'गोम्मटसारमें उनकी प्रशंसा करते हुए, उन्हें भार्यसेन गणिक गुणसमूहका धारक और भुवनगुरु. प्रगट किया है। और 'बाहुबनिचरित्र के क ने उन्हें नन्दिसंघके अन्तर्गत देशीगणका भाचर्य तथा श्री सिंहनन्दि मुनिके चरणकमलका अमर १-HIR, मूमिका 8 ५८१ग०, पृ० २०२ . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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