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ना सजवंश।
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साथ बाद करने के लिए 'शत्रु भयङ्कर' नामक राजाके भवनद्वारपर नोटिस लगा दिया था। यह उल्लेख उनकी विद्वत्ता, निर्मी कता मोर राज्यमान्यताका द्योतक है। श्री तोरणाचार्य और उनके शिष्य पुष्पनन्दि राजा शिवमारके गुरु थे। परमादीमल्लने नाना स्थानोश्र परवादियोंसे बाद करके अपने नामको सार्थक कर दिया था । मार्यदेव जैनधर्मके एक अन्य महाप्रचारक थे, जिन्होंने श्रवणबेलगोलकी विन्ध्यगिरिमर कायोत्सर्ग मुद्रासे समाधिमरण किया था। चन्द्रकीर्ति और कर्मप्रकृति नामक भाचार्य उनके समकालीन थे। चन्दकीर्तिने 'श्रुनबिन्दु' नामक ग्रन्थकी रचना की थी। उपरान्त श्रीपालदेव नामक प्रसिद्ध भाचार्य हुये, जिनका उल्लेख श्री जिनसेनाचार्य ने अपने आदिपुराण' में किया है, और जो व्याकरण, न्याय और सिद्धांत विषयों के पण्डित होने के कारण विद्याचार्य' कहलाते थे। इनके शिष्य प्रख्यात् वादी मीतसेन और हेमसेन थे, जिन्होंने बौद्ध वादियों को शास्त्रार्थमे परास्त किया था। श्रीधराचा. र्यके शिष्य एरेयप्पके गुरु एकाचार्य देशीगण और पुस्तकगच्छ के प्रसिद्ध भाचार्य थे, जिन्होंने एक महिने तक केवल जल लेकर जीवन निर्वाह करके समाधिमरण किया था । नवीं और दशवीं शताब्दिमें दक्षिण भारतमें एक विकट
पार्मिक परिवर्तन हुमा। जैनधर्म और बौद्धधर्म-संकट। धर्म-दोनों ही विरुद्ध शैव और वैष्णवों का
भकिवाद विजयी हुमा । पाण्यदेवमें 1-क्षिसं., पृष्ठ १०५. २-गग०, पृष्ठ १९९ -गम, १० २००.
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