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गङ्ग-राजवंश।
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है।" देवनंदि (पूज्यपाद) के तीन ग्रन्थोंको वक्ष्य करके यह प्रशंसा की गई प्रतीत होती है । शरीरके मलको नाश करनेके लिये उनका वैद्यकशास्त्र, वचनका मैल (दोष) मिटाने के लिए 'जैनेन्द्र व्याकरण' और मनका मैल दूर करने के लिए 'समाधितंत्र' नामक ग्रंथ उल्लेखनीय हैं।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि देवनन्दि पूज्यपाद एक बहु प्रख्यात् भाचार्य थे। उन्होंने सारे दक्षिण भारतमें भ्रमण करके धर्मका उद्योत किया था। जहां जहां वह जाते थे वहां वहां वादियोंसे बाद करते और विजय पाते थे, जिससे जैन धर्मकी अपूर्व प्रतिष्ठा स्थापित होगई थी। उनकी विद्या सार्वदेशी थी, जिसके कारण. उन्होंने सिद्धांत, न्याय और व्याकरणके अद्वितीय ग्रन्थ रचे थे । उनका जनेन्द्र व्याकरण' ही संभवतः जैनियोंद्वारा रचा हुआ संस्कृत भाषाका पहला व्याकरण है । इसके अतिरिक्त उन्होंने निम्न ग्रंथोंकी रचना और की थी:
१-सर्वार्थसिद्धि-दिगम्बर सम्प्रदायमें भाचार्य उमास्वामी कृत तत्वार्थाधिगम सूत्रकी यही सबसे पहली टीका है। इससे प्राचीन टीका स्वामी समन्तभद्र कृत गंधहस्ति भाष्य था; परन्तु वह अनुपलब्ध है।
२-समाधितंत्र-अध्यात्म विषयका बहुत ही गम्भीर और तात्विक ग्रन्थ है।
३-इष्टोपदेश-केवल ५१ श्लोक प्रमाण छोटासा सुन्दर उपदेशपूर्ण ग्रंथ है। .
४-न्यायकुमुद चन्द्रोदय-न्यायका ग्रन्थ है, जिसका उल्लेख हुमचके एक शिलालेखमें हुआ है।
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