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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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घुसकर बेङ्गिको चोलोंने अपना खास स्थान बना लिया था। राजराजने अपनी कन्या पूर्वी चालुक्य राजा विमलादित्यको व्याह दी थी। फिर उन्होंने पश्चिमी चालुक्योंपर माक्रमण किया। इस माक्रमणके झपट्टेमें गणवाड़ी भी भागई। गङ्ग और राष्ट्रकूट राजा पूर्वीय चालुक्योंके सहायक थे और मनन्तः दोनों ही अपने राजत्वसे हाथ धो बैठे ! सन् १०. ४ में राजेन्द्र चोकने तलकाको जीतकर गङ्ग राज्यका अन्त कर दिया। गङ्ग राज्यको उन्होंने अपने सरदारोंके माधीन अनेक प्रांतों में बांट दिया। किन्तु इतने पर गढ़वंश इतिहाससे बिल्कुल मिटा नहीं।
उनके वंशजोंका मस्सित्व तलकाडका पतन पतन । होने के बाद भी मिलता है। पश्चिमीय
चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम ( १०४२१०६२)का विवाह एक गङ्ग राजकुमारीसे ही हुआ था। जिनकी कोखसे सोमेश्व। द्वितीय (१०६८-१०७६) और उनके प्रख्यात् भाई विक्रमाङ्क (१०७६-११२६)का जन्म हुमा था। चोलोंके मधिकारमें गंग वंशज कोलर प्रांतमें शासन करते रहे थे और उपरांत वही होयसल राजाओंके विश्वासपात्र राजपदाधिकारी बने थे। विष्णुवर्द्धन होयसलके सेनापति गङ्गराज भी इसी गङ्गवंशके पुरुष. रत्न थे। उन्होंने सन् १११७ ई० में तलकाड़ पर माक्रमण करके चोलोंके इदियन्न अथवा अदिइन्न नामक सामन्तको परास्त किया था और तलकाड पर होयसकोंका अधिकार जमाया था। इसी प्रकार
१-गंग पृ. ११४-११८। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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