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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
यूं तो राजा ही सर्वाधिकारी था, परन्तु राज्यका सारा काम
अकेले ही कर लेना उसके लिये शक्य नहीं राजमंत्रीगण । था। इसलिये ही वह विविध कार्यों के लिये
राजमंत्री नियुक्त करता था और कार्याधिक्यके अनुसार ही उनकी संख्या भी कमती ज्यादा होती थी। बहुधा यह पद वंशपरम्परागत ही होता था। चामुंडरायके पिता और पितामह बुटुग मौरमारसिंहके राजमंत्री थे । राजमंत्रियों में दंडनायक (सेनापति), सर्वाधिकारी (प्रधान-मंत्री), मन्नेवेरगड्डे ( राजकीय.... हिरियभंडारी, युवराज, संधिविग्रही और महापधान होते थे, जो राज्य और न्यायकी व्यवस्था ही केवल भाग लेते हों, यह बात नहीं, बल्कि वह राजाके साथ दौरों और लड़ाहयों पर भी जाया करते थे। मंत्रियोंके अतिरिक्त महाप्रश्यित, महामार्यक अथवा अतःपुराध्यक्ष, अंतःपश्यित, निधिकार (कोषाध्यक्ष), राजपालक, पडियार, हदियार, सज्जेक, हदपद भादि राजर्मचारी होते थे। राजाके निजी और गुप्त कर्मचारी भी रहा करते थे। राजा, मंत्री और राजकर्मचारी राजनीतिमें दक्ष होते थे और तदनुसार कार्य करते थे। प्रान्तीय शासनकी व्यवस्था गजराज्यमें विविध राजकीय
विभागों और विभाग-गत उच्च एवं लघु प्रांतीय शासन कर्मचारियों की नियुक्ति द्वारा होती थी। व्यवस्था । राज्यव्यवस्थाके लिये सारा गणराज्य कई
प्रांतोंमें बांट दिया गया था। जो नाडु, विषय, वेन्ट्य और खम्पन नामक अन्तर्भागोंमें विभक्त था। प्रांत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com