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संक्षिप्त जैन इतिहास |
न्यायमें राजाका हाथ महादण्डनायक के अतिरिक्त धर्माध्यक्ष और राजाध्यक्ष नामक कर्मचारी भी बटाते थे । यदि किसी व्यक्तिको पुत्र नहीं होता था तो उसकी मृत्युके पश्च त् उसके धन-दौलतकी मालिक उसकी विधवा पत्नी और पुत्रियां भी होती थीं; यह बात गङ्ग न्यायमें खास थी । दासपुत्रोंको भी उत्तराधिकार प्राप्त था । पहले 'कुल' में किसी झगड़ेको तय किया जाता था । उसकी अपील व्यापारिक वेन्द्र श्रेणी' में होती थी और उसकी भी अपील 'पूग' नामक सार्वजनिक सभा जिसमें सभी नागरिक सम्मिलित होते थे, हो सकती थी। अंतिम निर्णय राजाके माधीन थी। न्याय व्यवस्था में राजाको अधिक कठोर बनने की आवश्यक्ता नहीं थी । जैनधर्मके प्रचारके कारण गङ्गवाड़ीके निवासियोंमें दया करुणा, सत्य, नैतिक दृढ़ता आदि गुणका बाहुल्य था, जिसकी वजह से अपराधों की संख्या बहुत कम होती थी । अपराधियोंको बहुधा जुम्मानेका दण्ड दिया जाता था । प्राणीवधका अपराधी अवश्य फांसीकी सजा पाता था । र गंगवाड़ीके निवासियोंमें अनेक प्रकारके मतमतांतरों की मान्यता थी। बहुधा लोग नागपूजा के अभ्यासी थे । धार्मिक स्थिति । वह भूत-प्रेत और वृक्षोंकी भी पूजा करते और बौद्ध-तीनों धर्म
थे । ब्राह्मण, जैन
१- गंग० ५० १७१-१७३।
2- As Jainism, the dominent religion of Gangavadi laid the strongest emphasis on moral rectitude and sanctity of animal life and promoted high truthfulness and honesty among the people, crime seems to have been rare.
— M. V. Krishna Rao, M. A., B. T. ) गङ्ग पृष्ठ १७७ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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