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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
किया था। 'यथा राजा तथा प्रजाः' की उक्ति उस समय कार्यकारी हुई। गंगवाड़ीमें जैनधर्मकी जड़ गहरी बैठ गई, उसका खूब ही प्रचार हुमा। जिनेन्द्रकी छत्रछायामें ही गंगवंशी शासकोंने राज्य किया। यद्यपि विष्णुगोपने वैष्णवमत गृहण कर लिया था; परन्तु फिर भी जैनधर्मका सितारा ऊंचा बना रहा। श्री विक्रमके समयसे गगवंशके राजामोंने जैनधर्मका पालन खुब दृढताके साथ किया। उधर राष्ट्र कूटोंका साहाय्य और संक्षण भी जैनधर्मको प्राप्त हुआ था। इन कारणोंसे जैनधर्मका इससमय विशेष अभ्युदय हुआ था। कई गगवंशी राजा जैसे नीतिमार्ग, बुटुग और मासिंह केवल जैन सिद्धांत के धुरंधर विद्वान थे, इतना ही नहीं बल्कि माने महान् धर्मकों के लिये भी वह प्रसिद्ध थे, जिन्होंने मन्दिरों, वस्तियों, मठों, मानस्तंभों, पुलों, सालाबों मादिको निर्माण कराया और उनके लिये भूमिदान भी दिया। चामुंडरायने 'चामुंडराय वस्ती' और विशाल गोम्मटमूर्ति श्रवणबेलगोल में निर्मापित कराये। और तो और, माखिरी अंधकारमय अवसर पर भी रक्कमगंग और नीतिमार्ग तृतीयने जैनधर्म प्रचार और प्रमावके लिये प्रशंसनीय उद्योग किया था। उन्होंने तककाडमें एक भव्य मन्दिर निर्माण कराया तथा और भी बहुतसे धार्मिक कार्य किये । खेद है कि यह सुन्दर नगर माज कावेरी नदीके रेनमें दवा पड़ा है। यदि कभी खुदाई हुई और उसका उद्धार हुआ, तो अपूर्व जैन कीर्तियां वहांसे उपलब्ध होंगी।'
इसप्रकार राजाश्रय प्राप्त करके जैनधर्म उन्नतावस्थाको प्राप्त
१-गंग०, पृष्ठ २०४-२०५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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