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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
रचनासे प्रगट है कि उनके ग्रन्थ बड़े महत्वके होते थे । परन्तु खेद है कि उनकी अन्य कोई रचना उपलब्ध नहीं है । ग्यारहवीं शताब्दि तक उनके प्रसिद्ध न्याय ग्रन्थ 'विलक्षण कदर्थन ' के अस्तित्वका पता चलता है । बौद्धाचार्य शांतिरक्षित ( सन् ७०५-७६२ ) ने अपने 'तत्वसंग्रह ' नामक ग्रंथमें उससे कतिपय श्लोक उद्धत किये थे। अलंकदेवके ग्रंथोंके प्रधान टीकाकार श्री मनन्तवीर्य भाचार्यने, जिनका आविर्भाव मफलंकदेवके मंतिम जीवनमें अथवा उनसे कुछ ही वर्षों बाद हुमा जान पड़ता है, मालंकदेव कृत 'सिद्ध विनिश्चय' ग्रन्थकी टीकाके 'हेतुलक्षण सिद्धि' नामक छठे प्रस्तावमें पात्रकेसरीस्वामी, उनके "त्रिकक्षण-कदर्थन ” ग्रन्थ और उनके 'अन्यथानुपपन्नत्वं' नामके प्रसिद्ध श्लोकके विषय में उल्लेखनीय चर्चा की है, जिससे पात्रकेसरीकी विद्वत्ता और योग चर्या का पता चलता है । कहते हैं कि उक्त श्लोककी रचनामें उन्हें श्री पद्मावतीदेवीने सहायता प्रदान की थी । वह तीर्थकर सीमेवरस्वामीके निकटसे उक्त इलोकको प्राप्त करके लाई और पात्रकेसरीको उसे दिया । शासनदेवताका इस प्रकार सहायक होना पात्रकेसरीको एक ऊंचे दर्जेका योगी प्रमाणित करता है। उस इलोकको पाकर ही पात्रकेसरी बौद्धोंके अनुमान विषयक हेतु बक्षणका खण्डन करने के लिये समर्थ हए थे। श्रवणबेलगोल के 'मल्लिषेण प्रशस्ति' नामक शिलालेख (नं. ५४-६७ में, जो कि शक सं० १०५० का लिखा हुमा है, · त्रिलक्षण-कदर्थन' के उल्लेखपूर्वक पात्रकेसरीकी स्तुति की गई है। यथाः
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