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गङ्ग-राजवंश।
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कहलाते थे । सामान्य सेनापति दण्डाधि' कहलाते थे । घुड़सेनाके स्वामी मवाध्यक्ष' अथवा ' तुरुग-साहजी' नामसे पुकारे जाते थे । इनके अतिरिक्त सेनामें भोकर मंडलीक, वैद्य और महा
व्यवहारी ( कमसरियट) भी होते थे । सेनामें बहुधा डाकुओंको भरती कर लिया जाता था, जो धनुर्विद्या बड़े चतुर होते थे। हाथियोंकी सेना मुख्य समझी जाती थी । सैनिक चमड़े का कोट
और फौलादका बख्तर तथा टोर पहनते थे। ढाल-तलवार, धनुष, बाण, बाछी, भाला मादि उनके शस्त्र होते थे। उनके पास एक प्रकारकी बंदूकें (Fire arms) भी होती थीं। युद्ध के समय गजा प्रजापर एक विशेष प्रकारका कर भी लगाता था। मानवोंकी निरर्थक हिंसा अधिक न हो, इसलिये मन्त्रिगण बहुधा जलयुद्ध-मल्लयुद्ध मादि सामान्य रूपमें जय-पराजयके निर्णायक उपार्योकी व्यवस्था देते थे। यदि शत्रु मुंहमें तृण दबाता तो समझ जाता था कि उसने पराजय स्वीकार करली है। गंग सेनाकी एक खास बात यह थी कि कुछ सैनिक इस प्रकारकी प्रतिज्ञा करते थे कि वे रणक्षेत्रमें राजाके साथ प्राण देदेंगे और यदि जीते बचे तो राजाकी मृत्यु पर उनके साथ अपनेको जला देंगे ! राजभक्तिकी यह पराकाष्ठा थी!' गङ्ग राज्यमें न्यायकी व्यवस्था राजाके ही माघीन थी। राजा
निष्पक्ष होकर न्याय करता था। यदि अपन्याय-व्यवस्था। राधी स्वयं राजाका निकट सम्बन्धी होता था
तो भी दण्डसे वञ्चित नहीं किया जाता था। १-गंग० पृ. १६२-७०।
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