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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
किसानोंके अतिरिक्त व्यापार मादिपर भी कर कगा करते थे। गङ्गोंने नाप और तोलके लिये अलग-अलग व्यवस्था नियत कर दी थी, उसी के अनुसार भूमिका नाप और नाजकी तौल हुमा करती थी। गङ्ग राज्यमें हग, कोडेवन, कसु और हेर द्रहम नामक सिक्कोंका चलन था, जो सोने के होते थे। उनपर एक ओर हाथी और दूसरी ओर किसी फूलका चिह्न बना होता था। गङ्ग राज्यव्यवस्था में ग्रामका स्थान मुख्य था। ग्रामका महत्व
और इस कारण उसकी पवित्रताकी छाप ग्रामव्यवस्था। लोगोंके हृदयों पर ऐसी लगी हुई थी कि
युद्धोंके बीचमें भी ग्राम अक्षुण्ण बने रहते थे। ग्रामोंकी व्यवस्था अपनी निराली थी। प्रत्येक ग्राममें एक मुखिया
और एक गणक ( Accountant ) रहता था; जिनके पद वंशपरम्परागत नियत होते थे । प्रत्येक ग्रामकी एक सभा होती थी, जिसका मधिवेशन गांवके मन्दिरके मण्डपोंमें हुआ करता था। भधिवेशनके अवसरपर सरकारी अफसर भी मौजूद रहते थे धर्मादा जायदाद और मन्दिर भादि पवित्र स्थानोंका प्रबन्ध भी उसके आधीन था। उसके द्वारा राज्यकर वसूल किये जाते थे और ग्रामकी भावश्यक्ताओं जैसे सिंलाई मादिका प्रबन्ध किया जाता था। विवादस्थ विषयों का निर्णय स्वयं राजा मथवा उसकी ओरसे नियुक्त 'धर्म-करनिक' नामक कर्मचारी किया करते थे। मन्दिरोंके पुजारी निन्हें राजाकी मोरसे भूमिदान मिला होता था, जनतामें सम्मानकी दृष्टिसे देखे
१-गंग० पृष्ठ १३९-१५० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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