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गङ्ग-राजवंश।
मुख्यतः जाडी ९६०००, वनवासी १२०००, पुन्नड १००००, केरेकुंड ३००, इलेनगरनाडु ७०, भवन्यनाडु ३०, और पोनेकुंड ११ थे। शिलालेखोंसे प्रष्ट है कि प्रांतोंके नामों के आगे जो संख्या दी गई है वह प्रत्येक प्रान्तसे उपलब्ध भामदनीकी द्योतक है। प्रत्येक प्रान्तका शासन एक वायसरायके भाधीन होता था, जो प्रयः राजवंशसे ही नियुक्त किया जाता था । रानमंत्रिगण भी कभी-कभी प्रांतीय शासक नियुक्त किये जाते थे। यद्यपि प्रांतीय सरकारें अपना स्वाधीन अस्तित्व रखती थी; परन्तु वह थी केन्द्रीय साकारके ही भाधीन । प्रांतीय शासककी भरनी सेना थी। वह दान भी देता था और अपने राजक्षेत्र में मामाना शसन वरता था। शासक प्रायः दंडनायक कहलाते थे। जो मंत्री सामंतोपर शासन करता था वह 'महा सामन्ताधिाति' कहलाता था। इन प्रांतीय शासकों का मुरूप कर्तव्य राजकर वसुल काना मोर न्यायकी व्यवस्था देना था। राज की माज्ञा विना वह राजकर न बढ़ा सकता था और न घटा ही। हेगडे अथवा राजाध्यक्ष हेग्गडे नामक कर्मचारीके माधीन प्रत्येक जिलेका शासनकार्य था। प्रभू या गौंड़ नामक कर्मचारी गांवकी व्यवस्थाका उत्तरदायी होता था। राजकर मुख्यतः फसककी उपजका छट्टा भाग होता था। फसलकी खतौनी बड़े भच्छे ढंगसे रखखी जाती थी, जिससे प्रत्येक किसानको मालम होजाता था कि उसे क्या राजकर देना है। मावश्यक्ता पड़नेपा मंत्रिमंडलकी सलाहसे राजा एक चौथाई राजकर भी वसूल करता था। खेतोंके बंजर पड़े रहने या फसल खराब होनेपर माफी और छूट भी राजा दिया करता था।
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