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गङ्ग राजवंश ।
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जैन धर्म राजाश्रय विहीन होकर अन्य मतावलम्बियों का कोपभाजन बन रहा था । रक्कस गङ्गके संरक्षणमें वह एकवार पुनः चमक उठा । उन्होंने अपनी राजधानीमें भी एक जिनमन्दिर निर्माण कराया, बेलू' में एक विशाल सरोवर पक्का कराया और कई स्थानों के मन्दिरोंको दान दिया। नोकम्बल्ल राजा उनके करद थे ।
रक्कम गङ्गके कोई संतान नहीं थी, इसीलिये उन्होंने अपने छोटे भाई के एक लड़के और एक लड़कीको गोद लिया था । लड़के का नाम राजविद्याधर था । संभवतः वह जल्दी स्वर्गवासी होगया था । इसी कारण राजाको उनकी बहिनकी रक्षा विशेष रूप से करनी पड़ी थी और उसे ही राज्याधिकारी बनाने का भी प्रबन्ध किया था। रकस गङ्गने छन्दोम्बुधिके रचियता कवि नागवर्मको आश्रम दिया था । नागवर्मने अपने ग्रन्थमें उनका विशेष उल्लेख किया है। उन्होंने सन् ९८५ से १०२४ ई० तक राज्य किया था । प्रारम्भमें वह स्वाधीन रहे थे; परन्तु जब चोलोंका जोर बढ़ा और इधर चामुंडराय स्वर्गवासी होगये, तो वह चोलोंकी छत्रछाया में शासन करते रहे थे । चामुंडरायके जीतेजी ग्रङ्ग राज्यकी ओर कोई आंख भी न उठा सका था और उसका गौरव पूर्ववत् बना रहा था । किन्तु सन् ९९० के बाद गङ्ग राजाको चोल और चालुक्य सदृश प्रबल शत्रुभोंसे मोरचा लेना पड़ा था; क्योंकि दोनों ही शासक नोलम्बवाड़ी और गङ्गवाड़ीको हड़प कर जाना चाहते थे ।
चोलोंने पल्लोंको हराकर दक्षिणवर्ती गङ्ग राज्यके प्रांतोपर अधिकार जमाना शुरू किया था। उधर पूर्वी चालुक्य राज्यमें
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