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गङ्ग राजवंश । [८९ मन्य गङ्ग राजकुमार भी उन्नतिको प्राप्त हुए, जो च'लुक्यों और होयसलोंकी शरणमें जारहे थे। उन्हीं लोगोंकी संतान माज राज्यश्री विहीन होकर मैसूरमें गङ्गवाड़िकर नामक लोग हैं। गल साम्राज्य में राजत्वका भादर्श ही राजाओंका पथ पर्शक
रहा। गङ्गराजा जानते थे कि प्रजाका राजत्वका आदर्श। अपने राजा और मंत्रियों में विश्वास होना
ही सफल शासनका चिह्न है । राजा और प्रजा मिलकर ही जनहितका बड़े से बड़ा कार्य कर सकते हैं। मतः रानाका यह कर्तव्य है कि पजाका सर्वोभद्र हित साधे। किरियमाघव, भविनीत दुर्विनीत, श्रीपुरुष मादि गङ्गराजाभोंने सदा ही अपनी प्रजाको प्रसन्न रखने का ध्यान रखखा । वह मनु सदृश मादर्श राज व्यवस्थापकके पदचिह्नों पर चलते थे। दूसरोंका हित साधना ही उनका संचित धन था। अपने शासितोंकी प्रसन्नतामें ही वे अपनी प्रसन्नता जानते थे। वे नीतिशास्त्रके नियमानुकूल ही रानवके आदर्शका पालन करते थे। जैनेतर मतोंमें दीक्षित हुए गा राजाओं नसे विष्णु-गोप मादिने वर्णाश्रम धर्मकी रक्षाका पूरा ध्यान रखा था। उनका प्रभाव उनके उत्तराधिकारियों पर भी पड़ा था। नीतिमार्गके लिये कहा गया है कि वह नीतिसारके अनुसार शासन करनेवाला सर्वश्रेष्ठ राजा थे। गंग राजाओंके राज्यकालमें पुरोहितोंका संगठन नहीं के बराबर था और उनका प्रभाव भी न कुछ था। गंगराजा हमेशा स्वाधीन रीतिसे राजधर्मानुकूल शासन करते थे-साम्प्रदायिकताकी पट्टरतामें वह नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com