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संक्षिप्त जैन इतिहास |
साधुजनोंके प्रचुर विहार से परवादियोंका मद चूर हुआ था । श्रवणबेलगोल में उन्होंने अद्भुत मंदिर और मूर्तियां निर्माण कराई थीं । सन् ९८१ में उन्होंने ५७ फीट ऊंची विशालकाय गोम्मट्ट मूर्ति विंध्यगिरि पर्वतपर स्थापित कर ई थी । यह मूर्ति शिल्लकलाका एक अनूठा नमूना है और भाज उसकी गणना संसारकी आश्चर्यमय वस्तुओंमें की जाती है । उस मूर्ति की रक्षा के लिये चामुंडरायने कई ग्राम भेंट किये थे । श्रवणबेळगोळ ग्रामको भी उन्होंने बसाया था और वहांवर जैन मठ स्थापित करके श्री नेमिचन्द्रस्वामीको मठाधीश नियुक्त किया था । " गोम्मट्टसार " में श्री नेमिचन्द्राचार्यजी ने श्रवणबेळगोळ में जिन मंदिर आदि निर्मित करानेके लिये चामुंडरायकी प्रशंसा की है। राजमल्लने उनके धार्मिक कार्योंसे प्रसन्न होकर उन्हें ' राय ' पदसे अलंकृत किया था ।
रकस - गंग।
राजमल्लने अपने योग्यतम राजमंत्री और सेनापत्ति श्री चामुंडराय के पथ प्रदर्शन में गङ्ग राज्यके प्रतापको स्थायी बनाये रखा । उपरांत उनकी मृत्यु होनेपर उनका भाई रक्कम - गङ्ग राजा हुआ, जो युवावस्था में पेड्डोरेके तटवर्ती प्रांतपर शासन करता था । राजमल्लकी सेनामें वह एक सेनापति भी रहे थे और उनका अपरनाम 'अण्णनवन्त' था । रक्स गङ्गके राज्यकालके कतिपय प्रारंभिक वर्ष शांतिमय थे और उस समयको उन्होंने धार्मिक कार्योंको करने, मुख्यत: जैन धर्मको उद्योतित करनेमें व्यतीत किया था । इससमय
१ - वीर वर्ष ७ चामुंडराय अंक पृष्ठ ३-८ व गंग० पृ० १११ - ११४'
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