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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
चामुंडरायने उन्हें अपना संरक्षण प्रदान किया था। रण्ण वैश्यजातिके नर-रत्न और उच्च कोटिके कवि थे। चौलुक्यराज तैलप मादिसे भी उन्होंने सम्मान प्राप्त किया था। उनके रचे हुये ग्रंथों में 'मनितपुराण' और 'साहस-भीम-विजय' उल्लेखनीय है । नागवर्मका 'छन्दोम्बुद्धि' नामक माङ्कार ग्रंथ प्रख्यात है। उन्होंने महाकवि बाणके 'कादम्बरी' काव्यका अनुवाद किया था। कन्नड साहित्यके साथ उनके समयमें संस्कृत मौर प्राकृत साहित्य भी समुन्नत हुये थे। भाचार्यप्रवर श्री मजितसेन, श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती, श्री माधवसेन विद्य-प्रभृति उद्धट विद्वानोंने अपनी छ मूल्य रच. नाओंसे इन भाषामोंके साहित्यको उन्नत बनाया था। चामुंडराय स्वयं कनड़ी, संकृत और प्राकतके एक अच्छे
विद्वान् मोर कवि थे। अपने जीवनकी कवि। शांतिमय घड़ियां उन्होंने साहित्यानुशीकन
और कविजनकी सत्संगतिमें विताई थीं। वह न्याय, व्याकरण, गणित, मायुर्वेद और साहित्यके धुरंधर विद्वान् थे। उन्ह प्रकृतिको देन थी जिससे वह शीघ्र ही अनूठी कविता रचते थे। उनके रचे हुये ग्रन्थोंमें इस समय केवल 'चारित्रसार ' मौर 'त्रिषष्ठि-लक्षण-पुराण' नामक ग्रन्थ मिलते हैं। पहला भाचार विषयक ग्रन्थ संस्कृत भाषामें है और श्री माणिकचंद्र दि० जैन ग्रंथमाला बम्बईमें छपचुका है। दूसरा कन्नड़ भाषामें एक प्रामाणिक पुराण प्रन्थ है । इसे 'चावंडराय पुराण' भी कहते हैं। कहा जाता है कि चामुंडरायने श्री नेमिचन्द्राचार्यके प्रसिद्ध सिद्धान्त अन्य
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