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गङ्ग - राजवंश |
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अपना राज्य सुदृढ़ बनाये रखने में सफल हुये । इस समय गङ्गोंके करद नोलम्ब राजाओंने स्वाधीन होनेके लिये प्रयत्न किया था; मारसिंहने एक बड़ी सेना उनके विरुद्ध भेजी और नोलम्ब कुळका ही अन्त कर डाला | नोलम्बवाडीकी प्रजाको मारसिंहने अपनी भाज्ञाकारिणी बनाकर उसे सुख शांतिपूर्ण राज्यका अनुभव कराया ।
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नोम्बोको परास्त करके मारसिंह सन् ९७२ ई० में लौटकर बँकापुर माये । इस समय उनके राज्यका विस्तार महानदी कृष्णा तक फैला हुआ था । जिसके अंतर्गत नौलम्बवाडी ३२०००, गङ्गवाडी ९६०००, बनवासी १२०००, शान्त लिगे १००० आदि प्रांत गर्भित थे । आखिर सन् ९७४ में अपना अंत समय निकट जानकर मारसिंहने श्री अजितसेनाचार्यके निकट सल्लेखना व्रत ग्रहण करके अपनी गौरवशालिनी ऐहिक लीला समाप्त की । कुडलूर के दानपत्रोंमें लिखा है कि 'मार सिंहको पराया मला करनेमें आनंद आता था; वह परधन और महान् व्यक्तित्व | परस्त्रीके त्यागी थे; सज्जनोंकी अपकीर्ति सुनने के लिये वह बहरे थे; साधुओं मौर ब्राह्मणों को दान देनेके लिये वह सदा तत्पर रहते थे; एवं शरणागतको वह अभय बनाते थे ।' दया- धर्म और साहित्य से उन्हें. गहरा अनुराग था । पशुओंकी रक्षा करनेका भी उन्हें ध्यान था । वैयाकरण यदि गंगल भट्ट एवं अन्य विद्वानोंको दान देकर उन्होंने
१–गङ्ग०, पृ० १०१-१०७. २- मैकु० पृ० ४७.
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