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संक्षिप्त जैन इतिहास |
चौड़ नरेश राजादित्यको जीता; तापी-तट, मान्यखेट, गोनूर, उच्चङ्गि, बनवासि व पामसेके युद्ध जीते; चेर, चोड़, पाण्ड्य और पल्लव नरेशोंको परास्त किया व जैन धर्मका प्रतिपालन किया और अनेक जिन मंदिर बनवाये । अन्तमें उन्होंने राज्यका परित्याग कर अजितसेन भट्टारकके समीर तीन दिवसतक सल्लेखना व्रतका पालन कर बङ्कापुरमें देहोत्सर्ग किया । इस लेख में वे गङ्ग-चूड़ामणि, नोकम्बान्तक, गुत्तिय - गन, मण्डलिक त्रिनेत्र, गङ्ग विद्याधर, गङ्ग कंदर्प, गन वज्र, गन सिंह, सत्यवाक्य कोङ्गणिवर्म-धर्म महाराजाघिराज मादि अनेक पदवियोंसे विभूषित किये गये हैं । इन उल्लेखोंसे मारसिंहका भद्भुत शौर्य और राष्ट्रकूट राजाओंके प्रति उनके मगाध प्रेम और श्रद्धाका पता चलता है ।
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दक्षिण में राष्ट्रकूटोंका प्रताप मारसिंहका ही ऋणी था । मभाग्यवश सन् ९६६ ई० में कृष्ण तृतीयका स्वर्गवास होगया, जिसके कारण राष्ट्रकूट साम्राज्यपर अधिकार प्राप्त करने के लिये घरेलू युद्ध छिड़ गया । छोटे-छोटे सामन्त स्वाधीन होनेके लिये आपस में लड़ने लगे । मारसिंहकी सहायता से राष्ट्रकूट राजा कक्क द्वितीयने ज्यों-त्यों करके आठ वर्षतक राज्य किया । उनके स्थानपर मारसिंहने अपने दामाद इन्द्रको राष्ट्रकूट सिंहासनपर प्रबल विरोधमें बैठाया; परन्तु वह राष्ट्रकूटोंके ढलते हुये प्रताप-सूर्यको मस्त होनेसे रोक न सके । चालुक्योंने राष्ट्रकूट साम्राज्य को छिन्नभिन्न कर दिया । राष्ट्रकूट साम्राज्य के पतनका असर मारसिंहपर भी पड़ा; परन्तु वह
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