________________
८० ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
वहां ही बीता होगा । चामुंडरायके जीवन कार्यका समय मारसिंह, राजमल्ल और रक्कमगङ्ग इन तीन गंग राजाओं के राज्यकाल के समतुल्य रहा है, इसलिये यह भी कहा जासक्ता है कि मारसिंह के राज्यारोहण के पहले ही चामुंडरायका जन्म हुआ था । मारसिंहक साथ तो वह युद्धों में जाकर भाग लेते थे । अतः इस समय उनका युवा होना निश्चित है । चामुंडरायकी माता काललदेवी जैनधर्म की दृढ श्रद्ध'लु थीं। उनकी अटूट जिनभक्तिका प्रतिबिम्ब उनके सुपुत्र चामुण्डराय दिव्य चरित्रमें देखनेको मिलता है ।' 'गोमट्टसार' से प्रगट है कि अजितसेन स्वामी चामुंडरायजी के दीक्षागुरु थे । आचार्य आर्यसेन से उन्होंने सिद्धान्त, विद्या और कलाकी शिक्षा प्राप्त की थी । बाचार्य महाराजके अनेक गुण गण उन्होंने धारण कर लिये थे । उपरान्त श्री नेमिचन्द्राचार्य के निकट रहकर उन्होंने अपना आध्यात्मिक ज्ञान उन्नत बनाया था ।
3
श्री नेमिचन्द्राचार्यजी स्वयं कहते हैं कि उनकी वचनरूपी किरणोंसे गुणरूपी रत्नों-कर शोभित च मुंडरायका यश जगतमें विस्तरित हो ! महाज्ञानी उपोरत्न ऋषियोंकी संगतिमें जन्म से रहकर चामुंडराय एक आदर्श श्रावक और अनुपम नागरिक प्रमाणित हुये थे । युवावस्था में जिस रमणी-रत्न से उनका विवाह हुआ था, उसका नाम अजितादेवी था; परन्तु उन्होंने किस कुलको अपने जन्म से
१ - वीर, वर्ष ७ चामुंडराय अंक पृष्ठ २ जस्स गुरु जयड बो राम्रो । 3- 'अजज सेण्ट
४- गोमहवार गाथा ९६७.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
२ - ' सो अजिय सेनणाहो गुणगणा समूह संधारि ।'
www.umaragyanbhandar.com