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गङ्ग राजवंश ।
[ ८१ सौभाग्यशाली बनाया था, यह ज्ञात नहीं । शायद कन्नड़ साहित्य में उनका गार्हस्थिक जीवन विशेष रीतिमे लिखा गया हो । कुछ भी हो, इसमें संशय नहीं कि उस समय गङ्गवाड़ी देशमें चामुंडराय के समतुल्य कोई दूसरा महापुरुष नहीं था। वह महीशू' (Mysore ) देश के भाग्यविधाता थे । उनकी इन विशेषताओं को लक्ष्य करके डी विद्वानोंने उन्हें 'ब्रह्मक्षत्र - कुल मानु'-' ब्रह्मक्षत्र - कुळ- मणि' मादि विशेषणोंसे स्मरण किया है। शासनाधिकारके महत्तर पदपर पहुंचकर भी उन्होंने नैतिक-नीनिका कभी उल्लंघन नहीं किया । उनके निकट सदा ही "परदारेषु मातृवत्" और परद्रव्येषु लोष्ठवत्" की उक्ति महत्वशाली रही थी । ऐसे गुणों क कारण वह " शौचामरण" कहे गये हैं। अपनी सत्यनिष्ठा के लिये वह इस कलिकाल में 'सत्व-युधि -
' कहलाते थे। वैसे उनके वैयक्तिक नाम च वुंडराम, राम और गोम्मट्टदेव थे । च वुंडराय नाम उनक माता-पिताने रखखा था । श्रवणबेळगोळ में बिंध्यगिरि पर्वत पर श्री बाहुबली स्व.मीकी विश क मूर्ति निर्माण करानेके कारण वह 'राम' नामसे प्रसिद्ध हुये थे । कन्नड भाषामें 'गोमट्ट' शब्दका भावार्थ 'कामदेव' सूचक है । चावुडरावने कामदेव बाहुबलिकी मूर्ति स्थापना करके यह नाम उपार्जन किया प्रतीत होता है। संस्कृत भाषाके जैन ग्रन्थोंमें उनका उल्लेख चामुंडराब नामसे हुआ है। उनके पूर्वभव सम्बन्ध में कहा गया है कि 'कृतयुग' में वह संमुख के समान थे, त्रेतायुग में रामके सदृश हुने और कलियुग में बीर - मार्तण्ड हैं। इन उल्लखोंसे उनका महान् व्यक्तित्व सहज अनुभवगम्य है ।
१- 'ब्रह्मक्षत्र कुभेदयाचळ शिरोभूषामविर्मानुमान् ।'
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