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संक्षिप्त जैन इतिहास।
हेव्वल्ल शिलालेखसे स्पष्ट है कि बुटुगची दुसरी रानीका नाम
कल्लभर अथवा कल्लबरीस था। मारसिंहका मारसिंह द्वितीय। जन्म इन्हींकी कोखसे हुमा था। उनका
पूरा नाम सत्यवाक्य कोणिवर्मा परमानडी मारसिंह था । उक्त लेखमें मारसिंह के भनेक विरुदोंका उल्लेख है, जिनमें से कुछ इस प्रकार थे : "चलद-उत्तरङ्ग"-"धर्मावतार""जगदेकबीर"_"गङ्गर सिंह" "गङ्गवज्र" "r कंदर्प" "नोलंबकुलान्त:"-"गङ्गचूड़ामणि'-"विद्याघर" और " मुत्तियगङ्ग"। मारसिंहके इन विरुदोंसे उनका महान् व्यक्तित्व स्वयमेव झलकता है । गङ्गवाड़ीमें उस समय उन जैसा महान् पुरुष शायद ही जन्मा था । कूडलूरके दानपत्रोंमें मासिंह का विशद चरित्र वर्णित है । उससे प्रकट है कि बाल्यावस्थासे ही मार सिंह अपने शारीरिक बल
और सैनिक शौर्यके लिये प्रसिद्ध थे। बचपनसे ही वह गुरुओंकी विनय और शिक्षकोंका मादर करना जानते थे। अपनी नम्रता, अपने समुदार चरित्र और अपनी विद्याके लिये वह प्रख्यात थे। यद्यपि उनका समूचा शासन काल संग्रामों और आक्रमणोंसे भरपूर रहा था; परन्तु फिर भी वह जनताका हित और भात्मकल्याण करना नहीं भूले थे। मारसिंहने भी मानी सैनिक नीति वही रक्खी थी, जो उनके पिताकी थी। राष्ट्रकूट राजामोंसे उन्होंने पूर्ववत् मैत्रीपूर्ण व्यवहार रक्खा था । वह कृष्णतृतीयके सामन्तरूपमें रहे थे। कृष्णराज जब अश्वपतिको जीतने के लिये जारहे थे तब उन्होंने मारसिंहका राज्याभिषेक करके उन्हें गणवाडीका शासक घोषित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com