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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
राजादित्यकी जीवनलीला समाप्त की थी। कृष्णराज उनके शौर्यको देखकर भति प्रसन्न हुए और उन्होंने मनलारसे कोई वर मांगनेके लिये कहा। वीर मनलारने एक सच्चे वीरकी भांति अपने स्वामीसे थोड़ीसी मुमि इसलिये ली कि उसपर वह अपने बहादुर कुत्तेका स्मारक बना दें जो एक जंगली सूअरसे लड़ता हुआ मरा था। ___इस संग्रामसे लौट कर कृष्णराजकी छावनी मेपति ( उत्तर
मर्काट ) नामक स्थान पर डाली गई थी। वैयक्तिक चरित्र । कृष्णराजने इस छावनी में ही अपने सामंतोंकी
भेटें स्वीकार की थीं तथा अपने सरदारोंमें प्रांतोंका बंटवारा किया था। कृष्णराज जब इस कार्यमें व्यस्त थे तब बुटुक चित्रकूट गढ़को जीतकर उसपर अपना झण्डा फहरा रहे थे । भागे बढ़कर बुटुगने सप्त-मालव देशको भी विजय किया और उसका नाम 'मालव-गङ्ग' रक्खा था। दिलीप नोलम्बको भी उन्होंने परास्त किया था। सारांशतः इस प्रकार अपनी दिग्विजय द्वारा बुटुगने गा-राज्यका विस्तार और गौरव बढ़ाया था। यद्यपि उन्होंने राष्ट्रकूटोंकी सत्ता स्वीकार की थी, परन्तु फिर भी बुटुग अपनेको महाराजाधिराज लिखते थे। अपने पूर्वजोंके पगचिह्नोंपर चलकर बुटुगने बड़ी उदारतापूर्वक शासन किया था । यद्यपि यह जैन धर्मके परम भक्त थे और जैन मंदिरोंके लिये उन्होंने दान दिये थे, फिर भी ब्राह्मणोंका उन्होंने भादर किया और उन्हें दान भी दिया था। बुटुग राजधर्म मौर भात्मधर्मके भेदको जानते थे। वह
जैन सिद्धांतके प्रकाण्ड पण्डित थे भौर परवादियोंसे शास्त्रार्थ भी किया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com