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गङ्ग राजवंश।
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नामक प्रान्त भी प्राप्त हुए थे। अमोघवर्षके जीवनकालमें ही इस दम्पतिके मरुल देव नामक पुत्रका जन्म हुआ था । बुठुगने वीस वर्षके दीर्घकाल में राज्यशासनका अनुभव प्राप्त किया था। दशवीं शताब्दिके प्रारम्भिक कालमें उसे अपनी पूरी शक्ति राज्यमें शान्ति
और व्यवस्था स्थापित करनेमें लगा देनी पड़ी थी। उपरांत उसने नीतिपूर्वक राज्य किया था। अमोघवर्षकी मृत्यु होनेपर बुटुगने उसके पुत्र कृष्ण तृतीयको राज्याधिकार प्राप्त करानेमें सहायता प्रदान की थी।
कृष्णने जब चोलराजा रानादित्य मुवड़ीचोल पर भाकमण किया तो बुटुगने बराबर उसका साथ दिया । और वे उसमें विनयी हुए । सन् ९४९ ई० में चोल युवराज राजादित्यने एकवार फिर अपना अधिकार जमानेका उद्योग किया था। ___टक्कोलम नामक स्थानपर दोनों सेनाओंमें भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें रानादित्य वीरगतिको प्राप्त हुमा था। इस युद्ध में बुटुग और उसकी सेनाके धनुर्घरोंने धनुर्विद्याका अपूर्व परिचय दिया था। इस युद्धके परिणामस्वरूप बुटुग और कृष्णने टोंडेमंडलम् पर अधिकार जमा लिया था और चोल देशमै भागे बढ़कर काञ्ची, तंजोर और नलकोटेके किलोंका घेरा डाला था। इस आक्रमणमें बुटुगकी सहायता वलमीके राना मनकारने की थी। मनलारकी उपाधि 'विशाल श्वतध्वजके मधिराज' थी, जिन्होंने चोल संग्राममें भगणित मनुष्योंको तलवारके घाट उतार कर 'शूद्रक' और 'सगर त्रिनेत्र' विरुद धारण किये थे। इस संग्राममें यही दो वीर थे और उन्होंने ही मिलकर
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