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पल्लव और कादम्ब राजवंश । [२७ EXTER
N ATAKAR..Karamanane .... Tunxx हुआ है। इस दानपत्रद्वारा उन्होंने कालबङ्ग नामक ग्राम भईत् पूजा मादि पुण्य कार्यों के लिये दान किया था।
मृगेशव का पुत्र रविवर्मा भी अपने पिताके समान जैनधर्म भक्त था। उनका एक दानपत्र हरसी ( बेलगांव ) से मिला है और उसमें लिखा है कि:" महागज रविने यह अनुशासन पत्र महानगर पलासिकमें स्थापित
किया कि श्री जिनेन्द्रकी प्रभावनाके लिये उस ग्रामकी आमदनी से प्रतिवर्ष कार्तिकी पूर्णिमाको श्री भष्टाह्निकोत्सव, जो लगातार माठ दिनोंतक होता है, मनाया जाया करे; चातुर्मासके दिनोंमें साधुओंकी वैयावृत्य किया जाया करे और विद्वज्जन उस महानताका उपभोग न्यायानुमोदित रूपमें किया करें । विद्वत्मण्डलमें श्री कुमारदत्त प्रधान हैं, जो अनेक शास्त्रों और मुभाषितोंके पारगामी हैं, लोकमें प्रख्यात हैं, सच्चारित्रके आगार हैं, और जिनकी संप्रदाय सम्मान्य है। धर्मात्मा ग्रामवासियों
और नागरिकोंको निरन्तर जिनेन्द्र भगवान्की पूजा करना चाहिये । जहां जिनेन्द्रकी पूजा सदैव की जाती है वहां उस देशकी अभिवृद्धि होती है, नगर आधि-व्याधिके भयसे मुक्त रहते हैं और शासकगण शक्तिशाली होते हैं।"
रविवर्माका उक्त दानपत्र जैनधर्ममें उनके दृढ़ श्रद्धानको प्रकट करता है । वह स्वयं श्रावकके दैनिक कर्म, जिनपूजा और दानका अभ्यास करते मिलते हैं और अपनी प्रजाको भी इस धर्मका पालन
१-हि., मा० १४ पृ. २२७. २-जैसाई. पृष्ठ ४७-४८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com