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गङ्ग राजवंश।
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दुर्वनीत के गुम्मरेड्डिपुरके दानपत्र में गङ्गराजाओंको यदुकुल शिरोमणि कृष्णमहारा जसे सम्बन्धित बताया है। स्व० जायसवाल जीने गङ्गकुलको मगधके कण्ववंशी राजाओंकी सन्तान भनुमान किया था; क्योंकि अंतिम घण्वराजा आन्ध्र नृपको पकड़कर दक्षिण लेगये थे और गङ्गोंका गोत्र भी कण्वयन है। एक अन्य विद्वान् अनुमान करते हैं कि वे कोदेशमें राज्य
___ करनेवाले राजाओं के वंशज हैं। 'कोअदेश कोडदेशके राजा। राजाक्कल' में इन राजाओंके नाम निम्न प्रकार
लिखे हैं:बीरराय चक्रवर्ती-गोविंदराय-कृष्णराय-कालवल्लभ-गोविंदराय-कन्नर ( कुमार ) देव-तिरुविक्रम ।
गङ्गवंशके पहले राजाका नाम कोङ्गुणिवर्मन् था और उपरांत कई गङ्गराजाओंके वैसे ही नाम थे जैसे कि कोडदेशके उपरोक्त राजामोंके थे। उपर्युल्लिखित कालवल्लभ, गोविन्द और कन्नर राजाभोंके राजमन्त्री नागनन्दि नामक जैनी थे। ऐसे ही कारणोंसे कोदेशके प्राचीन राजवंशसे गङ्गराजवंशका सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। किन्तु यह स्पष्ट है कि उनका सम्पर्क इक्ष्वाकुवंशसे था। सन् २२५ ई. से सन् ३४५ ई. तक इक्ष्वाकु वंशके राजाओंने आंध्र देशमें कृष्ण नदीसे उत्तर दिशामें स्थित देशपर राज्य किया था। श्री कृष्णरावका अनुमान है कि
१-पूर्व प्रमाण । २-पूर्व प्रमाण। 3-जमीयो०, भाग २६, पृ. २४७-२५४.
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