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गङ्ग राजवंश।
[५७ राठौर राजा गोविंदने गंगवाडीका राज्य शिवमारके पुत्र
मारसिंह और उसके भाई विजयादित्यके युवराज मारसिंह। मध्य भाषा २ बांट दिया था। शिवमारके
बन्दी होने पर मारसिंहने लोकत्रिनेत्र उपाधि धारण करके गंगवाड़ी पर शासन किया था। राठौर राजाओंके माधीन रहकर मारसिंहने युवराजके रूपमें गङ्गमण्डल पर शासन किया था। मालूम होता है कि उन्होंने गङ्गवंशकी एक स्वाधीन शास्त्रा स्थापित की थी। शिवमारका एक अन्य पुत्र पृथिवीपति नामक था। उसने अमोघवर्ष के भयसे भगे हुये मनुष्योंको शरण दी थी और पांड्यराजा वरगुणको श्रीपुर म्वियम्के मैदानमें परास्त किया था। किंतु उपरांत इसके विषयमें कुछ ज्ञात नहीं होता। शायद वह और विजयादित्य दोनों ही शिवमारके जीवन में ही स्वर्गवासी होगए थे। मारसिंहके समयमें गङ्ग राज्य दो भागोंमें विभक्त होगया
था। एक मागपर मारसिंह और उसके गङ्ग राज्यके दो उत्तराधिकारी राज्य करते रहे थे और दूसरे भाग। पर विजयादित्यका पुत्र राजमल्ल सत्यवाक्य
शासनाधिकारी हुमा था। राजमल्ल सन् ८१७ ई० को राजगद्दीपर बैठा, जब कि मारसिंह कोकर आदि उत्तर-पूर्वीय प्रांतोंपर शासन कर रहा था । मारसिंहने सन् ८५३ ई० तक राज्य किया था।
१-पूर्व• पृ० ६८. २-मैकृ० पृ० ४२. ३-गङ्ग० पृ०६९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com