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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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था और गङ्गोंका शासन मानने के लिये तैयार न था । महेन्द्रने बाणराज्यको नष्ट करके 'त्रिभुवनधीर' और 'महाबलिकुल-विध्वंशनं' विरूद धारण किये थे । हठात् गङ्गों के लिये महेन्द्रको समराङ्गणमें ललकारना भनिवार्य होगया था। तुम्बेदि और बेङ्गलुरू नामक स्थानों पर भयानक युद्ध हुये थे, जिनमें एरेयप्पके वीर योद्धा नगतर और घरसेन अपूर्व कौशलसे लड़ते हुये वीरगतिको प्राप्त हुये थे।
इस घटनासे कुपित होकर पेन्जेरुके भीषण युद्धमें नीतिमार्गने महेन्द्रको तलबारके घाट उतार कर 'महेन्द्रान्तक' विरुद धारण किया था। इस युद्ध के बाद ही नीतिमार्गने सुरूर, नदुगनि, मिदिगे, सुलिसैलेन्द्र, तिप्पेरु, पेन्डोरु इत्यादि दुर्गोको अपने माधीन कर लिया था। इसीसमय चोल पारान्तकने पल्लवराज्य पर अपना मधिकार जमा लिया था और बाणों के देशको जीत कर उसे गङ्गराज पृथिवीपति द्वितीयको भेंट कर दिया था, जैसे कि पहले लिखा जा चुका है। एरेयप्प नीतिमार्ग अपने पिताके समान ही एक महान् योद्धा थे। कुडलरके दानपत्रमें उन्हें एक महान् योद्धा, युद्धक्षेत्रमें निर्मय विचरण करनेवाला, संगीत वाद्य और नाट्य कलाओंमें द्वितीय भरत, व्याकरण मोर गजनीतिमें विशारद, और अपनी प्रजा तथ नोलम्ब, बाण, सगर मादि अपने सामन्तोंके परम हितेषी लिखा है। उनकी कोमरवेदाङ्ग' और 'कामद' उपाधियां थीं । चालय राजकुमार निनगलिकी पुत्री जावेसे उनका विवाह हुमा था। उन्होंने ब्राह्मणों तथा मुडहल्ली और तोरेमवुके जैन मंदिरोंको दान दिया था। उनको राज्य संरक्षण और शासन व्यवस्थाके कार्य में
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