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गङ्ग-राजवंश।
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धोखा दिया। हठात् अमोघवर्षको अपनी इस भयंकर गृह-स्थितिको सुधारना आवश्यक होगया-वह राज्यविस्तारकी आकांक्षाको भूल गये । उन्होंने दक्षिण में इस समय जो लड़ाइयां लडीं, वह हठात् अपनी मान रक्षाके लिये लडी-गणवाडी या अन्य प्रांतको हड़प जानेकी नीयतसे नहीं। फिर भी अमोघवर्ष रानमल्ल के स्वाधीन होने की घोषणासे तिलमिला उठे। उन्होंने शीघ्र ही वनवासी १२००० मादिके प्रांतिय शासक चेलकेतनवंशके सामन्त बङ्केप अथवा बङ्केपरसको उनपर आक्रमण करके गणवाडीको नष्ट भ्रष्ट करने के लिये भेज दिया । बङ्केपने जाते ही गङ्गोंके बड़े भारी और खूब ही सुरक्षित दुर्ग कैदल ( तुम्कुरके निकट ) पर अधिकार जमा लिया। बल्कि उसने गङ्गोंको खदेडकर कावेरी तटतक पहुंचा दिया। बङ्कसके शौर्यको देखते हुये यही अनुमान होता था कि वह सारी गणवाड़ीको विजय कर लेगा। किन्तु राष्ट्रकूटोंकी गृह अशांतिने इस समय ऐसा भयंकर रूप धारण किया कि हठात् अमोघवर्षको विजयी बङ्केसको वापस बुला लेना पड़ा। राजमल्लने इस अवसरसे लाम उठाया और उन्होंने उस सारे प्रदेशपर अधिकार जमा लिया, जिसे राष्ट्रकूटों (गठौरों) ने रङ्ग राजा शिवमारसे छीन लिया था। इस घटनाका उल्लेख एक शिलालेखमें है कि जिस प्रकार विष्णुने वाराह अवतार धारण करके पृथ्वीका उद्धार किया था, उसी प्रकार राजमल्लने गङ्गाडीका उद्धार राष्ट्रकूटोंसे किया !' राजमल्ल एक आदर्श शासक थे । शिलालेखोंमें उनके शौर्य, बुद्धि, दान मादि गुणोंका वखान हुभा मिलता है। उन्होंने ' सत्यवाक्य '
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