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गङ्ग-राजवंश।
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राजप्रबंधक, दानशील और साहित्योद्धारक राजा थे ।' पल्लवराजा नोलम्बाधिराज उसके माधीन गड ६००० पर शासन करते थे
और बाण-युद्धमें सहायक हुए थे। मन्ततः नीतिमार्ग सन ८७० ई० में स्वर्गवासी हुये थे। उन्होंने सल्लेखनावत धारण किया था। नीतिमार्ग प्रजाको अतीव प्यारा था-उनके एक भृत्यने स्वामीवात्सल्पसे प्रेरित हो उनके साथ ही प्राण विसर्जन किये थे। राजमल्ल सत्यवाक्य (द्वितीय) नीतिमार्गका पुत्र था और
वही उनके पश्चात् राजा हुभा। शासनसूत्र राजमल्ल द्वीतिय । संभालते ही राजालको वेङ्गिके चालुक्योंसे
मोरचा लेना पड़ा। चालुक्य राष्ट्रकूटोंके भी शत्रु थे और गङ्गोंसे राष्ट्रकूटोंकी मैत्री हो ही गई थी। मतः गङ्गों
और राष्ट्रकूटों-दोनों ने ही मिलकर चालुक्योंका मुकाबिला किया। किंतु एक ओर तो इन्हें चालुक्य सुङ्क विजयादित्य तृतीयसे लड़ना था और दूसरी ओर नोलम्बाघिरान महेन्द्रको दवाना था, जो गङ्गवाड़ी ६००० पर शासन करता था और अब स्वाधीन होना चाहता था। राजमल्ल और युवराज बुटुग इस दो रे माक्रमणसे कुछ उलझनमें फसे जरूर परन्तु मन्तमें राठौरोंकी सहायतासे वह सफल-प्रयास हुये। उघर कोङ्गु देशपर अधिकार जमाने की लालसा पल्लवोंकी थी, जिसके कारण उन्हें पांड्याजसे लड़ना पड़ा। इस पल्लव-पांड्य युद्धमें भी गङ्गोंकी बन माई-कोङ्गु । सियोंको बुटुगने कई वार परास्त किया था।
१-•• ७८-८०.२-मैकु. पृ. ४४.
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