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संक्षिप्त जैन इतिहास |
इसीलिये उसे 'भीम
जीवन ।
घारण कर लेता था, शिवमारका गार्हस्थिक कोप' कहा गया है। किंतु राज्यसंचालन में वह एक दयालु और उदार शासक था । कुम्मडवाड नामक स्थान पर उसने एक जैन मन्दिर बनवाया था और उसके लिए दान दिया था । श्रवणबेलगोलके छोटे पर्वत पर भी उसने एक जैन मंदिर निर्मापित कराया था । ब्राह्मणों को भी उसने दान दिया था। जैन धर्म के लिये तो वह आधारस्तम्भ ही थे ! यद्य पे भाग्य के झूरे में उन्होंने कई झोके खाये थे, परन्तु फिर भी उनका व्यक्तित्व महान् था | खास बात तो यह थी कि वह एक अतीव योग्य और शिक्षित शासक थे । शरीर भी उनका सुंदर, कामदेव के समान था। उनकी बुद्धि तीक्ष्ण, उनकी स्मृति सुदृढ़ और उनका ज्ञान परिष्कृत था । वह कोई भी विद्या शीघ्र ही सीख लेते थे । उनकी इस अलौकिक प्रतिभाने उनके समकालीन राजाओंको अचम्भे में डाल दिया था । उन्हें ललितकला से भी न था । केरेगोडु नामक स्थान से उत्तर दिशा में उन्होंने किल्नी नदीका अतीव सुंदर और दर्शनीय पुल बनाया था । वह स्वयं एक प्रतिमाशाली कवि थे । न्याय, सिद्धांत, व्याकरण आदि विद्याओं में भी वह निपुण थे । नाटक शास्त्र और नाटयशालाका उन्हें पूरा परिज्ञान था । कन्नड़ भाषा में उन्होंने हाथियोंके विषयको लेकर एक अनूठा पद्यग्रन्थ 'गजशतक' नामक लिखा था । 'सेतुबन्ध' नामक एक अन्य काव्य भी उन्होंने रचा था। पातञ्जलि योग शास्त्रका
उन्होंने विशेष अध्ययन किया था ।
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१- गंग० पृ० ६५-६७.
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