________________
गङ्ग-राजवंश।
[४१
उपरान्तके गङ्गराजाओंने विरूदरूपमें धारण किया था। यह ऊपर लिखा जा चुका है कि गङ्गगज्यके संस्थापक यही महापुरुष थे । दिदिगने मैसुरमें बाणावंशी राजाओंको परास्त किया और कोङ्कनतट पर अवस्थित माडलि पर अधिकार जमाया था। इस स्थानपर अपने गुरुके उपदेशसे उन्होंने एक जिन चैत्यालय निर्मापित कराया था।' मा सिंहके कुडलूर दानपत्रसे प्रकट है कि 'कोणिवर्मा (दिदिग ) ने श्री अर्हद्भट्टारकके मतके अनुप्रहसे महान शक्ति और श्री सिंहनन्दाचार्यकी कृपासे भुजविक्रम और पौरुष प्राप्त किये थे। इनके छोटे भाई माधव इनको राज्य संचालनमें सहायता देते थे । कहा जाता है कि दिदिगने अधिक समयतक राज्य किया था। दिदिगके पश्चात् उनका पुत्र किरिय (लघु) माधव राज्या
धिकारी हुआ ! उनका उद्देश्य प्रजाको सुखी किरिय माधव । बनाना था। निस्सन्देह गङ्ग राजनीतिमें
राजत्वका आदर्श सम्यक् रूपेण प्रजाका पालन करना था । ( सम्यक्-प्रजा-पालन-मात्राधिगतराज्य-प्रयोजनस्य ) माधव एक योद्धा होनेके साथ ही कुशल विद्वान थे। वह नीतिशास्त्र, उपनिषद, समाजशास्त्र आदि शास्त्रोंके पंडित थे। कवियों और पंडितोंका सम्मान वह स्वभावतः किया करते थे । उन्होंने — दत्तक सूत्र' नामक एक ग्रन्थ भी लिखा था ।र
१-गङ्ग. पृ० २५-२६. २-जैसाइं० पृ० ५४. राइस सा० इनका गज्यकाल द्वितीय शताब्दि बतलाते हैं। एक दानपत्रमें उसका समय सन्
१.३ ६० लिखा है। मैकु. पृ. ३२. २-गा. पृ० २१. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com