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संक्षिप्त जन इतिहास।
था और दक्षिणमें कोङ्देश था । सारांशतः माधुनिक मैसूरका अधिकांश भाग गङ्गवाडीमें अंतभुक्त था और मैसूर में जो आज कल गङ्गडिकार ( गङ्गवाडिकार ) नामक किसानोंकी भारी जन संख्या है वे गङ्गनरेशोंकी प्रजाके ही वंशज हैं। गङ्गराजाओंकी सबसे पहली राजधानी 'कुवलाल' व 'कोलार' थी, जो पूर्वी मैसूरमें पालार नदी के तटपर है। पीछे राजधानी कावेरीके तट पर 'तलकाड' को हटा लीगई जिसे संस्कृत भाषामें तलवनपुर कहा गया है। सातवीं शताब्दिमें मन्कुण्ड ( चन्नपाटनसे पश्चिममें ) राजगृह रक्खा गया और आठवीं शताब्दिमे श्री पुरुष नामक गङ्गनरेशने अपनी राजधानी बङ्गलोरके समीप मान्यपुर भी नियुक्त की थी। गङ्गोंका राजचिह्न 'मदगजेन्द्र लाञ्छन' (मत्त हाथी) और उनकी राजध्वजा 'पिञ्छध्वज' थी, जो फूलोंसे अंकित थी। दक्षिणके राजवंशोंमें वह प्रमुख जैन धर्मानुयायी गजवंश ५।' गङ्गोंकी राजवंशावली, इतिहास और उनकी तिथियों उनके प्राप्त शासनलेखोंसे ही संकलित किये गये हैं, जिसका संक्षिप्त-सार यहां पाठकोंके ज्ञान वर्द्धनार्थ उपस्थित किया जाता हैयह स्मरण रहे कि कलिङ्गके गङ्गोंसे भिन्नता प्रदर्शित करने के
लिये मैसूरके गङ्गराजा 'पश्चिमी गङ्गवंशके दिदिग कोङ्गुणिवर्म । नरेश' कहे गये हैं। इन पश्चिमी गङ्गों के
आदि नरेश दिदिग थे. जिनका दूसरा नाम कोणिवर्म अथवा कोन्कनिवर्मन भी था। दिदिगके इस नामको
१-गङ्ग०, पृ. ८ व जैशि सं० पृ. ७ (भूमिका) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com