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गङ्ग-राजवंश।
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राजाओंसे भी मुकाबिला लेना पड़ा था । द। आठवीं शताब्दिके मध्यवर्ती समयमें वे
चालुक्योंको परास्त करके दक्षिणके अधिकारी होगए थे; जैसे कि पाठक मागे पढ़ेंगे। राठौर ( अथवा राष्ट्रकूट) राजाओंके यह युद्ध भी राज्य विस्तारकी आकांक्षाको लिये हुये थे। इन युद्धोंकी भाशङ्कासे ही संभवतः श्रीपुरुषने अपनी राजधानी मनकुण्डसे हटाकर मान्यपुरमें स्थापित की थी। श्रीपुरुषका सबसे भयानक युद्ध राठौर राजा कृष्ण प्रथम अथवा कन्नरस बल्लहसे हुआ था, जिसमें कई गङ्ग-योद्धा काम भाये थे। पिन्चनुर और वोगेयूके यूद्धोंमें त्रिछत्रधारी वीर मुरुकोडे भन्नियर और पण्डित-शार्दुल श्रीरेवमन वीर गतिको प्राप्त हुये थे। कगेमोगीपुरके भयंकर युद्धमें श्रीपुरुषके स्वयं सेनापति मुरुगरेनाडुके सियगल्ल रणचंडीकी बलि चढ़ गये थे। सियगल्ल एक महान योद्धा थे, जिन्होंने पल्लवोंसे खूब ही कडाइयां लड़ी थीं और जो संग्रामभूमिमें रामतुल्य एवं शौर्य में पुरंधर कहे जाते थे । इन युद्धोंके परिणाम स्वरूप कृष्ण प्रथम (राठौर ) ने गंगवाडीपर किंचित् कालके लिए भधिकार जमा लिया था; किन्तु वृद्ध योद्धा श्रीपुरुष इस अपमानको सहन नहीं कर सके। उन्होंने शक्ति संचय करके राठौरोंपर आक्रमण किया और उन्हें 'गंगवाड़ीसे निकालकर बाहर कर दिया; बलिक उनके राज्य के बेलारी प्रदेशके पूर्वी भागपर भी अधिकार जमा लिया।' वहां परमगुलकी रानी और पक्काधिराजकी पोती कंडच्छीने एक जिनालय बनवाया
नांग पृ. १-५८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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