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संक्षिप्त जैन इतिहास |
था । श्रीपुरुषने उसके लिये दान दिया । परमगुल निर्गुण्ड के राजा थे ।
यद्यपि श्रीपुरुषका अधिकांश जीवन युद्धोंमें ही व्यतीत हुआ था और वह स्वयं एक महान योद्धा और विजेता था; परन्तु इतना होते हुये भी वह
क्रूर और अत्याचारी नहीं था ।
उन्होंने
श्रीपुरुषका महान्
व्यक्तित्व |
हाथियों के युद्ध विषयपर ' गजशास्त्र ' नामक एक ग्रंथ रचा था । वह स्वयं विद्वान् था और विद्वानोंका आदर करना जानता था | कवियोंकी रचनायें और महात्माओंके उपदेशों को वह बड़े चाव से सुनता था । उसकी उदारता के कारण अच्छे २ कवियों और विद्वानों का समूह श्रीपुरुषकी राजधानीमें एकत्रित होगया था | कविगण उनकी प्रशंसा 'प्रजापति ' कहकर करते थे । उनके राजमहल में निःय संत समागम और दानपुण्य हुआ करता था। यद्यपि वह जैन धर्म के श्रद्धानी थे; परन्तु ब्राह्मणों का भी समुचित आदर करते थे । जैनोंके साथ ब्राह्मणोंको भी उन्होंने दान दिया था । उनके अनेक विरुदोंमें उल्लेखनीय यह थे : 'पृथिवीकोङ्कणी'"कोङ्कणीमुत्तरस" - "पेरमनडी श्रीवल्लभ" और 'रणभञ्जन" । अपने अंतिम जीवन में उन्होंने राजकीय उपाधि "कोङ्गनि - राजाधिराज - परमेश्वर श्रीपुरुष नामक धारण की थी।
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श्रीपुरुषकी दो रानियाँ विनेयकिन इम्मड और विजयमहादेबी
० पृ० ३९. २- गंग, पृष्ठ ५८-५९.
२ - मैकु०
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