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गङ्ग-राजवंश।
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हरिवर्माके उत्तराधिकारी विष्णुगोप हुये, जिन्होंने जैनमतको
तिलाञ्जलि देकर वैष्णवमत धारण किया था। विष्णुगोप। उनके वैष्णव होने पर जो पांच राजचिह्न
इन्द्रने गङ्गोंको दिये थे वह लुप्त होगये । दानपत्रोंमें इन्हें 'शक्रतुल्य-पराक्रम, नारायण-चरणानुध्याता, गुरुगोब्राह्मण पूजक' इत्यादि कहा है, जिससे इनकी धार्मिकता स्पष्ट होती है। राज्यसंचालनमें वह ब्रहस्पति तुल्य कहे गये हैं। विष्णुगोपका नाती और पृथ्वीगङ्गका पुत्र तदङ्गल माधव उनके
बाद राजा हुआ। यह अपने पौरुष और तदङ्गल माधव । भुज विक्रमके लिये प्रसिद्ध था। वह एक
नामी पहलवान भी था। वह व्यम्बकदेवका उपासक था और ब्रामणोंको उसने दान दिए थे। यद्यपि वह स्वयं शैव था परन्तु उसने जैन मन्दिरों और बौद्ध विहारोंको भी दान दिया था। उसके राज्यकालमें गणराज्यका उत्कर्ष हुमा था । कदम्बराज कृष्णवर्मन् द्वितीयकी बहन माधवको ब्याही थी, जिनकी कोखसे प्रसिद्ध गङ्गराना मविनीतका जन्म हुआ था । माधवने मी अपने वीर योद्धामोंका सम्मान किया था। अविनीतका राज्यतिकक उसकी माकी गोदमें ही होगया था।
मालुम होता है कि उसके पिताने दीर्घकाल. अविनीत। तक राज्य किया था और वह उनके
स्वर्गवासी हो जानेपर जन्मा था। कहा १-गा• पृ. १. २-मैकु., पृ. ३४. 3-14. पृ० ३१-१२.
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