________________
३६ ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
( २ )
गङ्ग-राजवंश |
दक्षिण भारतमें मन्ध्रराजवंश शक्तिहीन होनेपर ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियोंमें जो राजवंश शक्ति
शाली हुये थे, उनमें गङ्ग- राजवंश भी एक
प्रमुख राजवंश था । पल्लव, कदम्ब, इक्ष्वाकु आदि राजवंशों के साथ ही इसका भी अभ्युदय हुआ था और वर्तमान मैसूर राज्य में वह शासनाधिकारी था । यद्यपि गङ्ग राजवंशकी उत्पत्तिके विषय में कई किम्बदन्तियाँ प्रचलित हैं परन्तु यह स्पष्ट है कि दक्षिण भारतका वह अत्यन्त प्रतिष्ठित राजकुल था। गङ्गवंशकी अपनी अनुश्रुति इस विषय में यह है कि इक्ष्वाकुवंशी हरिश्चन्द्रके पुत्र भरत थे, जिनकी रानी विजयमहादेवीने एक दिन गंगा स्नान किया और वरदानमें गङ्गदत्त नामक पुत्र पाया । इन्हीं गङ्गदत्त की सन्तति 'गङ्ग' वंशके नामसे प्रसिद्ध हुई। उज्जैन के राजा महीपालने जब गङ्गपर आक्रमण किया तो पद्मनाम गङ्गने अपने दो पुत्रोंदिदिग और माधवको राजचिह्नों सहित दक्षिणकी ओर भेज दिया । उनके चचेरे भाई पहले से ही कलिङ्गमें राज्य कर रहे थे। इन दोनों भाइयोंने एक जैनाचार्य की सहायता से गङ्गराज्यकी स्थापना की । कलिङ्गके गङ्ग राजाओंके शिलालेखों में भी गंगास्नान के वरदानस्वरूप जन्मे हुये गाङ्गेयकी सन्तान 'गङ्ग' राजा कहे गये हैं । गङ्गनृक
गङ्ग- राजवंश |
१ - दुका० ७१२२५, २३६ व ३५: २- गङ्ग० पृष्ठ ५-६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com