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पल्लव और कादम्ब राजवंश ।
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यापनीय - संघकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दिमें हुई कही जाती है । देवसेनाचार्य ने 'दर्शनसार' में लिखा है वर्ष पचत्
कि विक्रमराजकी मृत्युके २०५ कल्याणनगर में श्वेतांबर साधु श्रीकलशने
यापनीय दिगम्बर
जैन संघ ।
यापनीय संघ की स्थापना की थी।' श्री रत्ननन्दिजी ' भद्रबाहु चरित् ' में इस संघकी उत्पत्तिके विषय में लिखते हैं कि कटक में राजा भूपाक राज्य करते थे, जिनकी प्रिय रानी नृकुलदेवी थीं। रानीने एकदा राजासे उसके गुरुओंको बुलाने के लिए कहा । राजाने बुद्धिसागर मंत्री को भेजकर उन गुरुओंको बुलवाया; किंतु जब वे आये और राजाने देखा कि वे दिगंबर न होकर वस्त्रधारी साधु हैं तो उसके आश्चर्यका ठिकाना न रहा । वह चुपचाप रनवासमें लौट आया । रानीको जब यह बात मालूम हुई तो वह जल्दी से अपने गुरुयोंके पास गई और उन्हें समझा-बुझाकर निर्ग्रन्थ दिगम्बर भेष धारण करा दिया। राजा उनका बाह्य भेष देखकर प्रसन्न हुआ। उन साधुओंकी शेष क्रियायें श्वेताम्बरीब साधुओंके समान रहीं इसीलिये वे लोग 'यापनीय' नाम से प्रख्यात होगये । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यापय संघके साधुओंने दिगम्बर और श्वेताम्बरोंके बीचमें 'मध्यमार्ग' ग्रहण किया था। वे रहते तो थे दिगम्बरोंकी तरह नंगे और दिगम्बर प्रतिमाओं की स्थापना कराते थे, परन्तु स्त्री मुक्ति और केवलीकवलाहार जैसे श्वेताम्बरीय सिद्धांतोको भी मानते थे । इसीलिये उनका अपना स्वाधीन अस्तित्व था ।
१- बेहि०, मा० १३.
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