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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
महान् व्यक्तित्वका पता चलता है । सारांशतः कदम्ब वंशके राजाओं द्वारा जैन धर्मका अभ्युदय विशेष हुमा था। कदम्ब-साम्राज्यमें दिगम्बर जैन धर्म ही प्रबल था, यद्यपि
उस समय वह कई संघों जैसे यापनीय. जैन संप्रदाय। कूर्चक, अहिरिष्ट आदिमें विभक्त होगया
था। परन्तु दिगम्बर जैनोंके साथ ही श्वेताम्बर जैनोंका अस्तित्व भी कदम्ब राज्यमें था। कदम्ब दानपत्रोंमें उनको · श्वेतपट ' लिखा गया है, जब कि दिगम्बर जैनोंका उल्लेख · निन्थ ' नामसे हुआ है ।' मालूम ऐसा होता है कि उस समयतक दिगम्बर जैनी अपने प्राचीन नाम ' निम्रन्थ ' से ही प्रसिद्ध थे। उनके साधु नंगे रहा करते थे, जिनका मनुकरण श्वेतपत्र जैनों के अतिरिक्त शेष सब ही संप्रदायों के जैनी किया करते थे । अहिरिष्ट निर्ग्रन्थ संभवतः कलिङ्ग देशतक फैले हुए थे, क्योंकि बौद्ध ग्रंथ ' दाठा वंश' से प्रगट है कि कलिङ्गका गुहशिव नामक राजा महिरिक-निग्रन्थों का भक्त था। जब गुहशिवके बौद्ध मंत्रीने उसे जैन धर्म के विमुख भर दिया था, तब यह निग्रन्थ पाटलिपुत्रके राजा पांडुके भाश्रयमें जारहे थे।' हमारे विचारसे यह अहिरिकनिर्गन्ध और कदम्ब दानपत्रमें उल्लिखित महिरिष्ट-निर्ग्रन्थ एक ही थे। इन्हींका उल्लेख संस्कृत ग्रंथों में संभवतः महीक नामसे हुआ है।
-जैहिक, मा. १४, पृ. २२०. २-दाठायो पृ० १०-१४ व विदिमु. पृ. ५० व १२४.
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