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पल्लव और कदम्ब राजवंश। [९ प्रकार पल्लव अपनी प्रतिभा और प्रतिष्ठासे हाथ धोकर येनकेन प्रकारेण अपना मस्तित्व बनाये रहे ।'
ऐतिहासिक कालमें सर्व प्रथम उनका वर्णन समुद्रगुप्तके वृत्तांतमें मिलता है, जिसने पल्लवराजा विष्णुगोपको सन् ३५० ई० में पराजित किया था। अपने उत्कर्षके समयमें पल्लवोंके राज्यकी उत्तरी सीमा नर्मदा थी और दक्षिणी पन्नार नदी । दक्षिणमें समुद्रसे समुद्रतक उनका राज्य था। उनमें पहले-पहले सिंह विष्णु नामक राजा प्रसिद्ध हुआ था। उसका यह दावा था कि उसने दक्षिणके तीनों राज्यों के अतिरिक्त लङ्काको भी विनय किया था। उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र महेन्द्रवर्मन् प्रथम हुमा।
उसकी ख्याति पहाडोंसे काटी हुई गुफाओंके महेन्द्रवर्मन् । उन अगणित मंदिरोंसे है जो तृचनापली,
चिनलेपुट, उत्तरी भाट और दक्षिण अफ्रटमें मिलते हैं। उसने महेन्द्रवाड़ी नामका एक बड़ा नगर बसाया और उसके समीप एक बड़ा तालाब अपने नामपर खुदवाया। इस राजाको विद्या और कलासे अति प्रेम था। इसने 'मत्तविलास प्रहसन्' नामक एक ग्रंथ रचा था, जिसमें भिन्न मतोंका उपहास किया था । कहते हैं कि पल्लव वंशका सबसे नामी राजा नरसिंहवर्मन् था।
उसने पुलकेशिनको परास्त करके सन् ६४२ ानत्सांग । ई० में वातापि (बादामी) पर अधिकार प्राप्त
किया, जिससे चालुक्योंको भारी क्षति उठानी १-मैकु०; पृष्ठ ५३. २-लामाइ०, पृ. २९६. ३-जैसाई., पृ. ३६.
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