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पल और कदम्ब राजवंश ।
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इसी के अंतिम समय में कदम्ब साम्राज्य छिन्न-भिन्न होगया था । इसका पुत्र शोक और कज्जाके मारे साधु ढोकर चला गया था । और पल्लवोंने अपना झण्डा कदम्ब साम्राज्य के भव्य - खंडहर पर
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फहराया था ।
उपरांत कृष्णवर्मा द्वितीयका उत्तराधिकारी अजवर्मा हुआ
ज़रूर, परन्तु चालुक्यराज कीर्तिवर्माने उसे न का बना छोड़ा | अजवर्मा के पुत्र भोगिवर्मा ने अपने मुजविक्रमसे कदम्बोंकी लुप्त हुईं श्रीको पुनः प्राप्त करनेका सदुद्योग किया और उसमें वह किंचित् सफल भी हुआ; परन्तु गन और चालुक्य वंशके राजाओंके समक्ष वह टिक न सका । चालुक्यराज पुलके सिन् द्वितीयने सन् ६१२ ई० में वनवासीपर अधिकार जमाकर कदम्ब शक्तिका मन्त कर दिया ।
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कदम्ब वंशका
पतन ।
कदम्ब राजघरानेक्का सम्बन्ध काकुस्थ - भन्वय और मानव्यस गोत्र से था । 'स्वामी महासेन' और 'मातृगण ' के अनुध्यानपूर्वक कदम्बराजा अभिषिक्त होते थे। यह स्वामी महासेन संभवतः कदम्ब
वंशके कोई कुलगुरु थे । मातृगण से अभिप्राय उन स्वर्गीय माताओंक समूहक्क मालुम होता है, जिनकी संख्या कुछ लोग सात, कुछ आठ और कुछ और इससे भी अधिक मानते हैं । जान पड़ता है कि कदम्ब वंशके राजघराने में इन देवियोंकी
कदम्बों की उपाधियां !
१ - जमीसो०, मा० २१ पृष्ठ ३१३-३२४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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