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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
AINIONLIMALAMAUNIALINIRAINRITHIKSHAMITICAINAILERNITINATIHAATIOAMRAKHIRAINITIONE
मृगेशका पुत्र रविवर्मा अल्पायुमें ही राज्याधिकारी हुआ।
इसीलिये राजतंत्रकी बागडोर उसके चाचा रविवर्मा। मानधातिवर्माके भाधीन रही थी। परन्तु
मल्पकालमें ज्यों ही रविवर्मा पूर्ण भायुको प्राप्त हुये कि उन्होंने राज्यशासनका भार अपने सुयोग्य कन्धोंपर उठाया और पूरी अर्द्धशताब्दि (४५०-५००) तक सानन्द राज्य किया । बनवासीके कदम्ब राजाओंमें वही अन्तिम प्रभावशाली राजा था। उसका शासनकाल दीर्घ और समृद्धिपूर्ण था। रविवर्माने कई संग्राम लड़े थे और उनमें वह विजयी हुआ था। उसका चाचा विष्णुवर्मा जो पलासिकमें राज्य करता था, उसके खिलाफ होकर पञ्चोंसे ना मिला था; परन्तु रविवर्माने उन सबको परास्त किया था। रविके हाथसे विष्णुवर्मा और कांचीके चन्डदण्ड पल्लव तलवारके घाट उतरे थे। शासन प्रबन्धमें रविके छोटे भाई भानुवर्माने उसका खूब ही हाथ बंटाया था। रवि सन् ५०० ई० में स्वर्गवासी हुआ था। उपरांत रविका पुत्र हरिवर्मा कदम्ब राजसिंहासनपर बैठा ।
हरिवर्माका यह दावा था कि उसने जो परिवर्मा। भी धन सञ्चय किया है वह न्यायोपार्जित
है। अपने पारंभिक जीवन में हरिवर्मा जैन धर्मानुयायी था, परन्तु अपने राज्यकालके सातवें-माठवें वर्षमें वह ब्रामणमतमें दीक्षित होगया था। हरिके पश्चात् महाराज कृष्णवर्मा द्वितीय राजा हुमा; जिसने मश्वमेष यज्ञ रचा था। खेद है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com