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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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(. मयूरवर्माका उत्तराधिकारी उसका पुत्र कंगुवर्मा था। जिसने
सन् ३००-३२५ ई० तक राज्य किया कंगवर्मा-भगीरथ था । इसने भी कई एक लड़ाइयां लड़ी थीं। और रघु। उसके पश्चात् उसका पुत्र भगीरथ (३२५
३४०) राज्याधिकारी हुआ था। इस राजाका शासनकाल संग्रामरहित शांति और समृद्धिपूर्ण था। इसकी ख्याति भी चहुँ ओर थी। किन्तु इसका पुत्र रघु (३४०-३६०) संग्राम और विजयों के लील क्षेत्र में राजसिंहासनारूढ़ हुआ। उसके मुख पर शत्रुओंके अस्त्रप्रहारों के अनेक चिह्न विद्यमान थे। उसने अपनी विजयों द्वारा कदम्ब राज्यका विस्तार इतना बढ़ाया था कि वह अकेला उसका प्रबंध नहीं कर सका था। परिणामतः पलासिकमें उसने अपने भाई काकुस्थको वायसराय नियुक्त किया था । ग्घु अपनी प्रजाका प्यारा था । शत्रु उसके नाम सुनते ही दहलते थे। वह वेदोंका प्रकाण्ड विद्वान् और एक प्रतिभाशाली कवि भी था। रघुके पश्चात् काकुस्थवर्मा (३६०-३९० ई०) राजा हुआ
था। कदम्बर राजाओंमें वह महा बलवान कास्थवर्मा। था। अपने भाई ग्घुसे उसे न केवल विस्तृत
साम्राज्य ही उत्तराधिकारमें मिला था, बल्कि सुप्रबन्धके लिये योग्य क्षमता भी उसने प्राप्त की थी। वह देखने में सुन्दर और अपने सम्बन्धियोंको मति प्यारा था । वह राज्यशासन करना अपना धर्म और स्वर्ग प्राप्तिका एक कारण समझता था। उसके राज्यकालमें प्रजा समृदिशालिनी थी भौर रुषिकी उन्नति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com