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पल्लव और कादम्ब राजवंश।
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थे। उन्होंने ब्राह्मण धर्मको उन्नत बनानेके लिये भरसक प्रयत्न किये थे। संयुक्त प्रांतीय बरेली जिलेके अहिच्छत्र स्थानसे ब्राह्मणों को
बुला कर मुकुण्ण कदम्बने कर्णाटक देशमें मयूरशर्मा । वसाया था। मुकुण्णके उत्तराधिकारी त्रिलोचन,
मधुकेश्वर, मल्लिनाथ और चन्द्रवर्मा थे। चंद्रवर्माका उत्तराधिकारी मयूरवर्मा था, जिसे मयूरशर्मा भी कहते थे। वस्तुतः मयूरशर्मासे ही कदम्ब वंशका ठीक इतिहास प्रारम्म होता है। उसके द्वारा ही कदम्ब वंशका अभ्युदय विशेष हुमा था। इसी कारण उसे ही कदम्ब वंशका संस्थापक कहते हैं। मयूरशर्मा स्तनकुन्डुर अग्रहारसे सम्बन्धित एक श्रद्धालु ब्राह्मण था। वह एक दफा अपने गुरु वीरशर्माके साथ पल्लवराजधानी काञ्चीमें विद्याध्ययन करने के लिये गया । वहाँ एक पल्लव सैनिकसे उसकी तकरार होगई; बिससे . चिढ़कर उसने बदला चुकानेकी ठान ली। मयूरशर्माने पल्लवों पर धावा बोल दिया और उनके सीमावर्ती प्रांतोंपर अधिकार जमाकर वह श्रीपर्वत् ( श्रीशैलम् ) पर अड्डा जमाकर बैठ गया । उपरान्त उसने बाणवंशी एवं अन्य राजाओंको भी अपने माधीन किया था। चन्द्रवल्लीके शिक्षालेखसे स्पष्ट है कि मयुरशर्माने त्रैकूट, मभीर, पल्लव, परियात्र, शकस्थान, पुनाट, मन्करि और अन्य राजाओंको परास्त किया था। इस प्रकार अपना एकछत्र राज्य स्थापित करके मयूरशर्माने धूमधामसे राज्याभिषेकोत्सव मनाया था। उसका राज्यका सन् २६०-३००१. बताया जाता है।
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