________________
२४ ]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
भी बड़ी मान्यता थी । कदम्ब राजगण ' हारिती पुत्र' भी कहलाते थे, जो संभवतः उनके घराने की कोई प्रसिद्ध और पूजनीया महिला थी। सिंह और बानर उनके ध्वनचिह्न थे, जो उनके सिक्कोंपर भी मिलते हैं । कमलका चिह्न भी उनके द्वारा प्रयुक्त हुआ था। उनका अपना अनोखा बाजा था, जिसे 'पेग्मत्ति' कहते थे। उनके विरुद " धर्म - महाराजाधिराज" और " प्रतिकृति - स्वाध्याय - चर्चा- पारा " थे । उन्होंने राजत्वके आदर्शको प्रजाहितके लिये कुछ उठा न रख कर खूब ही निभाया था | अन्याय से धन संचय करनेके वे विरुद्ध थे । प्रजाकी शुभ कामनायें उनके साथ थीं ।
वनवासी कदम्बकी मुख्य राजधानी थी और बेलगांव जिलेमें पलासिक तथा चितदुर्ग जिलेमें उच्छशृङ्गी कदंबों की राजधानियां उनकी प्रांतीय राजधानियां थीं, जहां उनके वायसराय रहा करते थे । त्रिपर्वत नामक एक
और शासन प्रणाली |
अन्य राजधानीका भी उल्लेख मिलता है। इन स्थानों पर राजकुलके पुरुष ही वायसराय होते थे। शासन व्यवस्थाकी सुविधा के लिये कदम्बोंने केंद्रीय शक्तिको कई विभागों में बांट दिया था। उनके लेखों में गृहसचिव, सचिव, प्रमुखप्रबन्धक आदिका उल्लेख हुआ मिलता है । साम्राज्यको भी कदम्बोंने • मण्डलों' और ' विषयों में विभाजित कर दिया था, जिसके कारण राज्यका प्रबन्ध करने में सुविधा होगई थी । अनेक ग्रामोंका
"
१- हि० भा० १४ पृ० २२५... व जमीसो० भा० २२ १० ५६.
,
२ - जमीसो०, मा० २२ ५० ५६-५७.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
,
www.umaragyanbhandar.com