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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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शैव होने पर कुरनसुन्दरने जैनों को बेहद कष्ट दिये । धर्मान्धताकी चरमसीमाको वह पहुंच गया और उसने आठ हजार निरापराध जैनियोंको कोल्हूमें पिलवा कर मरवा डाला, केवल इसलिये कि उन्होंने शैव मतमें दीक्षित होना स्वीकार नहीं किया था । खेद है कि अर्काट जिलेके त्रिवतूर नामक स्थान पर उपस्थित शैव मंदि - रमें इस धर्मान्धतापूर्ण व भीषण रोमांचकारी घटना के चित्र दिवालों पर अङ्कित हैं और अब भी वहांके शिवमहोत्सव में सातवें दिन स्वास तौर पर इस घटना का उत्सव मनाया जाता है । इस नवजागृति के जमाने में धर्मान्धताका यह प्रदर्शन घृणास्पद और दयनीय है । उपरांत चोल राजाओंके अभ्युदयकालमें भी जैन धर्म पनप न सका । राजराज चोल तो जनोंका कट्टर शत्रु था। उसके विरिश्चिपुरम् के दानपत्र से प्रगट है कि उसने एक धार्मिक कर भी जैनियों पर लगाया था । जैनोंके और ब्राह्मर्णोंके खेतोंको उसने अलग-अलग कर दिया, जिसमें जैनोंको हानि उठानी पड़ी; परन्तु इतने पर भी जैन धर्मको यह शैवलोग मिटा न सके । स्वयं राजराजकी बड़ी बहनने तिरुमलयपर 'कुन्दवय' नामक जिनालय बनवाया था | जैनाचार्योंने इस धर्मसंकट के अवसरपर बड़ी दीर्घदर्शिता से काम लिया । उन्होंने दक्षिण के अर्द्धसभ्य कुरुम्ब लोगोंको जैन धर्ममें दीक्षित करके अपना संरक्षक बना लिया ।
चोल राजा और जैन धर्म |
१- अहिइ०, पृष्ठ ४९५. २- साईजै० मा० १ पृ० ६४ - ६८ व अहिं० पृ० ४७५. ३- जैसाइं०, पृ० ४३.
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